Tuesday, September 27, 2011

परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...

अपने बेटे सार्थक और उसकी हरकतों को देख-देखकर मैं हमेशा बेहद खुशी महसूस करता हूं, क्योंकि मेरे माता-पिता के मुताबिक वह बिल्कुल मेरे जैसा है, और उसके शौक भी मुझसे मिलते-जुलते हैं...

मेरी तरह उसे भी कम्प्यूटर पर वीडियो गेम खेलने, गाने सुनने और फिल्में देखने का शौक है... मेरी ही तरह उसे कलाबाजियां खाने, जिमनास्टिक्स, और मार्शल आर्ट्स में काफी रुचि है... वह मेरी ही तरह ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर चढ़ता रहता है... मेरी तरह सार्थक भी चित्रकारी करना और रंगों से खेलना पसंद करता है... मेरी तरह उसे भी कार में घूमने का शौक है...

मैं लगभग सभी पिताओं की तरह अपने बेटे की हर फरमाइश को पूरा करने की इच्छा भी रखता हूं, सो, उसके सभी शौक मेरे जरिये पूरे हो जाते हैं, और इसीलिए वह हमेशा मेरे साथ बेहद खुश रहता है...

वैसे मुझे इन सबके अलावा पढ़ने-लिखने और कार चलाने का भी काफी शौक है, लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें थीं... छोटी उम्र की वजह से सार्थक अभी अच्छी तरह पढ़ना-लिखना नहीं जानता, और अभी गाड़ी चलाने की भी उम्र नहीं हुई उसकी...

बहरहाल, एक शाम हम दोनों बाज़ार गए थे, और वापसी में साहबज़ादे ने फरमाइश की, "पापा, मुझे भी कार चलाना सिखाइए न...?"

मैंने घूमकर उसकी ओर देखा, और मुस्कुराकर कहा, "अभी तुम बहुत छोटे हो, सार्थक... अभी कई साल लगेंगे तुम्हें गाड़ी चलाना सीखने के लायक बनने में..."

सार्थक के चेहरे पर उलझन के भाव आए, और वह बोला, "सीखने लायक बनने का क्या मतलब होता है, पापा...?"

मैंने एक किनारे गाड़ी को रोका, और उसके सिर पर हाथ फिराकर प्यार से बोला, "बेटे, गाड़ी चलाना सीखने से पहले उनसे जुड़े कुछ कायदे याद करना ज़रूरी होता है... बिल्कुल वैसे ही, जैसे हिन्दी या अंग्रेज़ी की कहानी-कविताएं पढ़ाने से पहले आपके स्कूल में आपको क-ख-ग और ए-बी-सी सिखाई गई थी..."

सार्थक को कुछ-कुछ समझ आया, और उसका अगला सवाल था, "ओह, तो क्या गाड़ी चलाने के लिए भी कोई क-ख-ग होती है क्या...?"

मैंने ज़ोर से हंसा, और बोला, "हां बेटे, होती है... और उसे सीखने में ज़्यादा समय भी नहीं लगता..."
सार्थक तपाक से बोला, "तो फिर आप सिखाइए मुझे..."

मैंने कहा, "पहले घर चलते हैं, वरना मम्मी को चिंता हो जाएगी... और मैं वादा करता हूं, घर चलकर आपको नई क-ख-ग सिखा दूंगा..."

बच्चों से कभी झूठे वादे नहीं करने का फायदा यह होता है कि वे हमेशा हमारी बात मान लेते हैं, सो, वही हुआ... सार्थक तुरंत बोला, "ठीक है, पापा... घर चलकर ही सही..."

हम घर पहुंचे, और सार्थक तुरंत कपड़े बदलकर मेरे साथ आकर लेट गया, और बोला, "अब शुरू करें, पापा...?"

उसका उत्साह मुझे हमेशा पसंद आता है, इसलिए दिन-भर की थकान के बावजूद मैंने हामी भर दी...

सार्थक चेहरे पर बेहद उत्सुक भाव लिए मेरे बोलने का इंतज़ार कर रहा था, जब मैंने कहा, "सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि गाड़ी चलाने के लिए पहला कायदा यह होता है कि चलाने वाले की उम्र कम से कम 18 साल की होनी चाहिए..."

सार्थक तुरंत मायूस स्वर में बोला, "इसका मतलब मुझे बहुत साल इंतज़ार करना होगा, क्योंकि मैं तो अभी सिर्फ छह साल का हूं...?"

मैंने हां में सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए कहा, "हां बेटे, कार चलाने के लिए तो इंतज़ार करना होगा, लेकिन उसके कायदे आप अभी से सीख सकते हो..."

सार्थक के चेहरे पर फिर मुस्कान आ गई, और बोला, "ठीक है फिर... सिखाइए मुझे..."

मैंने बोलना शुरू किया, और सार्थक बहुत ध्यान से सुन रहा था, "बेटे, सबसे पहला नियम तो आप अब जान ही गए हो, लेकिन 18 साल का होने के बाद भी जब आपके पास गाड़ी चलाने का लाइसेंस न हो, आपको गाड़ी नहीं चलानी चाहिए..."

सार्थक फिर उलझन में आ गया, "लेकिन पापा, अभी आपने कहा, गाड़ी चलाने के लिए उम्र 18 साल होनी चाहिए, फिर यह लाइसेंस क्या होता है...?"

मैंने बताया, "बेटा, आप जब 18 साल के हो जाते हैं, आप यातायात कार्यालय में जाकर गाड़ी चलाना सीखने के लिए एक अर्जी देते हैं, और वे आपको प्रशिक्षु लाइसेंस (लर्निन्ग लाइसेंस) जारी कर देते हैं... उसके कुछ समय के बाद आप गाड़ी चलाना सीखकर वापस उनके पास जाते हैं, ड्राइविंग का टेस्ट देते हैं, तब आपको सड़क पर गाड़ी चलाने का लाइसेंस मिलता है... सो, याद रखना, लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाने का मतलब है, आपको गाड़ी चलाना नहीं आता, और आप सभी के लिए खतरा बन सकते हैं... और हां, बिना लाइसेंस गाड़ी चलाना अपराध भी है..."

सार्थक घबराकर बोला, "इसका मतलब, पुलिस भी पकड़ सकती है... ओके, मैं याद रखूंगा कि गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस होना ज़रूरी है..."

मैं हंसकर बोला, "शाबास बेटे... अब आपको दूसरा नियम बताता हूं... जब आप गाड़ी चलाने निकलें, यह पक्का कर लें, कि गाड़ी सही हालत में है, इसलिए उसकी सर्विस, जांच और देखभाल नियमित रूप से करवाते रहें..."

सार्थक तपाक से बोला, "हां, सही कह रहे हैं आप... एक दिन सामने वाले अंकल भी कह रहे थे, उन्होंने अपनी कार में कोई ऑयल नहीं बदलवाया था, इसलिए रात को सुनसान सड़क पर जब गाड़ी खराब हो गई, वह बहुत डर गए थे... बड़ी मुश्किल से घर पहुंचे थे वह..."

मैंने कहा, "हां बेटे, बिल्कुल सही... इसीलिए गाड़ी को हमेशा बिल्कुल ठीक रखना चाहिए... वैसे इसके अलावा भी दो और बातें हैं, जिनका ध्यान आपको गाड़ी चलाने से पहले रखना होगा... एक, गाड़ी का बीमा हो, और वह नियमित रूप से नवीकृत (रिन्यू) करवाया गया हो..."

सार्थक कतई कुछ नहीं समझा, उलझन-भरे स्वर में बोला, "अब यह बीमा क्या होता है, पापा...?"

मैंने समझाया, "बेटे, अगर आपकी गाड़ी चोरी हो गई तो कितना नुकसान होगा..."

सार्थक उत्तेजित होकर बोला, "अरे, फिर हम नई गाड़ी कैसे लाएंगे, क्योंकि आपने कहा था, बहुत सारे रुपये की आती है गाड़ी..."

मैं मुस्कुराया, "इसीलिए बीमा ज़रूरी होता है, बेटे... अगर आपकी गाड़ी चोरी हो जाए, या उसके साथ कोई एक्सीडेंट हो जाए, जिसमें गाड़ी टूट-फूट जाए, तो जो भी नुकसान होता है, वह बीमा कंपनी देगी, और आपका नुकसान कम से कम होगा... यहां तक कि अगर बीमा ढंग से करवाया जाए तो एक्सीडेंट में आपको या किसी और को चोट लगने पर भी बीमा कंपनी इलाज का पैसा खर्च करेगी..."

सार्थक मुस्कुराया, "ठीक है, पापा... बीमा करवाना भी याद रखूंगा... अब आप दूसरी बात बताओ..."

मैं फिर बोला, "इसके अलावा गाड़ी जो धुआं छोड़ती है, उसकी अधिकतम मात्रा से जुड़ा भी एक नियम बनाया गया है, ताकि शहर में धुआं कम से कम हो, और लोग बीमार न पड़ें..."

सार्थक को फिर एक पुरानी बात याद आई, और बोला, "हां, आपने कहा था, आपकी नानी जी को किसी बीमारी की वजह से सांस लेने में परेशानी होती थी, और इसी वजह से वह भगवान जी के पास भी चली गई थीं..."

मैंने तुरंत कहा, "हां सार्थक, बिल्कुल सही... मेरी नानी जी को दमे की बीमारी थी, जो गाड़ियों के धुएं से भी फैलती है... इसीलिए गाड़ी से धुआं नियंत्रित मात्रा में ही निकलें, इसकी जांच भी करवाते रहनी चाहिए... सो, याद रखना, गाड़ी से जुड़े सभी प्रमाणपत्र पूरे होने चाहिए, और हमेशा उन्हें अपने साथ ही रखना चाहिए, वरना इसके लिए भी पुलिस पकड़ सकती है..."

सार्थक बेचारा पुलिस के नाम से घबराता है, बोला, "अरे बाप रे... क्या गाड़ी से जुड़े हर काम के लिए पुलिस पकड़ लेती है...?"

मैं ज़ोर से हंसा, "हां, पकड़ती तो है, लेकिन यह ज़रूरी भी है, बेटे..."

सार्थक मुस्कुराकर बोला, "ठीक है, पापा... अब आगे बताइए..."

मैंने फिर कहा, "अब नंबर आता है, गाड़ी में लगे शीशों का, जिन्हें आप छेड़ते रहते हो..."

सार्थक तपाक से बोला, "मैं तो नहीं छेड़ता, लेकिन मम्मी बिन्दी ठीक करने के लिए उस शीशे को हिलाती हैं... आपको तो पता ही है, क्योंकि आप उन्हें डांटते भी हो..."

मैंने उसके सिर पर चपत लगाई, और कहा, "मेरी कार के शीशे को मम्मी हिलाती हैं, लेकिन चाचू के स्कूटर के शीशे को तो आप ही हिलाते रहते हो न...?"

सार्थक ने सिर झुकाकर कहा, "हां, वह तो मैं करता हूं... सॉरी... अब नहीं छेड़ूंगा, लेकिन उनके बारे में आप क्या बता रहे थे...?"

मैंने कहा, "वे शीशे गाड़ी चलाते वक्त आपको अपने पीछे चल रहे वाहनों को देखने में मदद करते हैं, ताकि एक्सीडेंट से बचा जा सके... क्योंकि अगर आप पीछे से आती गाड़ी को नहीं देख पाए, और अचानक मुड़ गए, तो टक्कर हो सकती है..."

सार्थक ने तुरंत कहा, "हां, बिल्कुल सही... जैसे आज ही मैं बिना देखे भागकर स्कूल के दरवाज़े से बाहर आ रहा था, और मुझे दिखा ही नहीं कि दूसरी तरफ से एक लड़की आ रही थी... हम दोनों बहुत ज़ोर से टकराए, और गिर गए..."

मैंने उसके सिर पर हाथ फिराया, और कहा, "आप मेरे होशियार बेटे हो, हर बात बहुत जल्दी समझ जाते हो... इसीलिए कार या स्कूटर या मोटरसाइकिल चलाते वक्त शीशे को ऐसी स्थिति में रखना चाहिए, ताकि पीछे से आती गाड़ियों को बिना गर्दन घुमाए हमेशा देखा जा सके..."

सार्थक बोला, "ठीक है, पापा... यह भी याद रखूंगा... अब प्लीज़ यह बताना शुरू कीजिए, कि गाड़ी चलाते वक्त क्या कायदे याद रखने होते हैं..."

मैंने कहा, "ठीक है, बेटे... गाड़ी में बैठने का सबसे पहला कायदा यह है कि आपको सीट बेल्ट बांधनी होती है, ताकि एक्सीडेंट हो भी जाए तो चोट कम से कम लगे, और खासतौर पर, सामने वाले कांच से टकराकर सिर न फट जाए..."

सार्थक एकदम हैरान हो गया, "यह बेल्ट चोट से बचने के लिए होती है...? मैं तो समझता था, यह गाड़ी चलाने वाले की यूनिफॉर्म होती है..."

मेरी हंसी छूट गई, और बोला, "हां बेटे, यह चोट से बचने के लिए ही होती है, लेकिन हर व्यक्ति इसे यूनिफॉर्म समझकर हमेशा पहनने लगे, तो कितना फायदा होगा..."

सार्थक ने फिर सवाल किया, "ओके, पापा... लेकिन चाचू के स्कूटर पर बेल्ट क्यों नहीं है...?"

मैं हैरान था कि इसे इतने सवाल कैसे सूझ जाते हैं, लेकिन खुश भी था, कि दिमाग से तेज़ है मेरा बेटा...

खैर, मैंने जवाब देते हुए कहा, "बेटे, स्कूटर या मोटरसाइकिल पर बेल्ट बांधने की जगह नहीं होती है, इसलिए उस पर बैठने से पहले हेल्मेट पहनना पड़ता है, ताकि गिर भी जाओ तो सिर बचा रहे..."

सार्थक तुरंत बोला, "अरे हां... याद आ गया, चाचू भी तो पहनते हैं, और एक बार शौक-शौक में मैंने भी पहना था... तो कार में सीट बेल्ट और स्कूटर पर हेल्मेट एक ही वजह से पहने जाते हैं...?"


मैं मुस्कुराया, "बिल्कुल ठीक समझे, बेटे... अब आगे सुनो... जैसे सड़क पार करने के लिए पैदल चलने वालों के लिए जगह तय होती है, उसी तरह गाड़ियों के लिए भी सड़क में लेन तय होती हैं..."

सार्थक फिर चकराया, "तय की गई लेन का क्या मतलब होता है, पापा...?"

मैंने बताया, "बेटे, सड़क पर सबसे दाईं ओर की लेन दूसरी गाड़ियों को ओवरटेक करने के लिए होती है... और दिल्ली में सबसे बाईं ओर की लेन डीटीसी की बसों के लिए होती है... इसके अलावा आपको अगर किसी चौराहे से मोड़ लेना है, तो कुछ दूर पहले ही मोड़ के मुताबिक दाईं या बाईं ओर की लेन में आ जाना चाहिए, लेकिन याद रहे, लेन बदलने या मोड़ लेने से पहले इंडिकेटर ज़रूर चलाएं, ताकि पीछे आ रही गाड़ियों को पता चल जाए, वरना एक्सीडेंट हो सकता है..."

सार्थक बहुत उत्सुकता से सुन रहा था, "ओके पापा, आगे बताइए..."

मैं फिर बोला, "गाड़ी चलाने के लिए गति, यानि स्पीड भी तय की गई है... आपको यह भी ध्यान रखना होगा, कि गाड़ी उससे तेज़ न चले..."

सार्थक ने चेहरे पर मुस्कान लाकर चहकते हुए फिर सवाल किया, "लेकिन स्पीड से क्या फर्क पड़ता है, पापा, क्योंकि तेज़ गाड़ी में तो ज़्यादा मज़ा आता है, जब हवा लगती है..."

मैंने कहा, "बेटे, मज़ा तो आता है, लेकिन अगर कभी अचानक कोई सामने आ जाए तो गाड़ी रोकना मुश्किल हो जाता है, और एक्सीडेंट हो सकता है... इसके अलावा हमेशा मोड़ तथा चौराहों पर अपनी गति विशेष रूप से नियंत्रित रखनी चाहिए... ऐसा करने से अचानक किसी के सामने आने पर रुकना आसान होता है... यह भी याद रखें कि यदि आपके पहुंचने से पहले चौराहे पर बत्ती पीली हो चुकी है, तो गाड़ी की स्पीड कम कर लें, और हमेशा जेब्रा क्रॉसिंग और स्टॉप लाइन से पहले रुकें, ताकि पैदल चलने वालों को रास्ता मिल सके..."

सार्थक के चेहरे से मुस्कान तुरंत पुंछ गई, और बोला, "ओह... हां, अगर टक्कर हो जाए, तो हम भगवान जी के पास भी पहुंच सकते हैं... ठीक है, स्पीड भी कम रखनी चाहिए, याद रखूंगा..."

मैंने आगे कहा, "स्पीड के अलावा याद रखने वाली बातों में यह भी शामिल है कि रात के वक्त आप ओवरटेक करने के लिए साइड मांगते वक्त ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न नहीं बजाएं, और हाईबीम का फ्लैश मारकर साइड मांगें, तो बेहतर रहता है... और किसी भी गाड़ी को हमेशा दाईं ओर से ही ओवरटेक करना चाहिए..."

सार्थक फिर बोला, "ठीक है, और बताइए..."

मैंने फिर बोलना शुरू किया, "रात के वक्त कभी भी हेडलाइट को हाईबीम पर न जलाकर डिपर ही जलाएं, ताकि सामने से आ रही गाड़ी के ड्राइवर की आंखें नहीं चौंधियाएं, जिससे दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी... यह भी याद रखें, कि जब तक ज़रूरी न हो, हॉर्न न बजाएं, क्योंकि उससे भी ध्वनि प्रदूषण फैलता है... इसके अलावा छोटी सड़क से मेन रोड या बड़ी सड़क पर आते समय सही और तय किए गए कट का ही प्रयोग करें, और ट्रैफिक के साथ-साथ ही चलें... यह भी याद रखना चाहिए कि जब आप कहीं बाहर जाकर अपनी गाड़ी पार्क करें, उसे बिल्कुल सीधा रखें, ताकि शेष गाड़ियों को आने-जाने में परेशानी न हो... पार्किंग करते वक्त यह भी चेक करना चाहिए कि गाड़ी अच्छी तरह लॉक कर दी है या नहीं..."

सार्थक ने सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं, और बोला, "ठीक है, पापा... मैं प्रॉमिस करता हूं, ये सभी बातें याद कर लूंगा, और जब मैं 18 साल का हो जाऊंगा, गाड़ी चलाना सीखकर, लाइसेंस बनवाकर आपको बिठाकर गाड़ी चलाकर दिखाऊंगा, ताकि आपको पता लग जाए, मैंने आपकी सारी बातें याद कर ली हैं..."

मैं उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराने के अलावा कुछ न कर सका, और सहलाते हुए बोला, "बस, एक-दो बातें और याद रखना, बेटे... मैं और आपकी मम्मी आपको और आपकी बहन निष्ठा को बहुत प्यार करते हैं... इसलिए हमेशा ध्यान रखना, पापा से इस बारे में कोई झूठा प्रॉमिस मत करना..."

सार्थक कसकर मुझसे लिपट गया, और बोला, "आई प्रॉमिस, पापा, कभी भी आपसे कोई झूठा प्रॉमिस नहीं करूंगा..."

...और उसके बाद कुछ ही मिनटों में वह मेरी बांहों में ही मुझसे लिपटे-लिपटे सो गया...

===============================================================
इस आलेख की पहली दो कड़ियां भी पढ़ें...

* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...
===============================================================

Friday, September 23, 2011

The picture of the decade: The unborn thanks the surgeon...

If you find the picture unclear, click on it to enlarge...


(Courtesy: Internet)

If you find the picture unclear, click on it to enlarge...

The picture is that of a 21-week-old unborn baby named Samuel Alexander Armas, who is being operated on by surgeon named Joseph Bruner...

The baby was diagnosed with spina bifida and would not survive if removed from his mother's womb...

Little Samuel's mother, Julie Armas, is an obstetrics nurse in Atlanta...

She knew of Dr. Bruner's remarkable surgical procedure...

Practicing at Vanderbilt University Medical Center in Nashville, he performs these special operations while the baby is still in the womb...

During the procedure, the doctor removes the uterus via C-section and makes a small incision to operate on the baby...

As Dr. Bruner completed the surgery on Samuel, the little guy reached his tiny, but fully developed hand through the incision and firmly grasped the surgeon's finger...

Dr. Bruner was reported as saying that when his finger was grasped, it was the most emotional moment of his life, and that for an instant during the procedure he was just frozen, totally immobile...

The photograph captures this amazing event with perfect clarity...

The editors titled the picture, 'Hand of Hope'...

The text explaining the picture begins, "The tiny hand of 21-week-old fetus Samuel Alexander Armas emerges from the mother's uterus to grasp the finger of Dr. Joseph Bruner as if thanking the doctor for the gift of life..."

Little Samuel's mother said they 'wept for days' when they saw the picture...

She said, "The photo reminds us pregnancy isn't about disability or an illness, it's about a little person..."

Samuel was born in perfect health, the operation 100 percent successful...

Thursday, September 8, 2011

क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...

छुट्टियों में बच्चे घर आए हुए थे, और मेरा इरादा उन्हें शनिवार-रविवार को कहीं घुमाने ले जाने का था...

पत्नी से बात की तो उन्होंने चिड़ियाघर ले चलने का सुझाव दिया, जो मुझे भी काफी पसंद आया...

सो, हमने शुक्रवार की रात को ही बच्चों को बता दिया, और उनका उत्साह देखते ही बनता था... शनिवार को दोनों बच्चे सचमुच सुबह-सुबह उठ गए, और हमें भी उठाकर जल्द से जल्द तैयार होने के लिए कहा...

बस, फिर क्या था, हम दोनों भी फटाफट तैयार हुए, और फिर हम बच्चों को नहीं, बच्चे हमें कार तक लेकर गए... मैंने कार का दरवाज़ा खोला, और हमेशा की तरह बच्चों से पीछे की सीट पर पहुंचने के लिए कहा...

सार्थक और निष्ठा तुरंत कार में सवार हो गए, हेमा मेरे साथ आगे की सीट पर बैठीं, और हम चल दिए...

रास्ते में फ्लाईओवर के ऊपर से दिखतीं दिल्ली कैन्टॉन्मेन्ट (दिल्ली छावनी) रेलवे स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियां, धौला कुआं पर खूबसूरत-से दिखने वाले सड़कों के लूप, फिर चाणक्य पुरी से होकर गुज़रते हुए तीन मूर्ति चौक पर लगी मूर्ति, साफ-सुथरी-लम्बी-चौड़ी अकबर रोड, और फिर इंडिया गेट देखकर बच्चों की खुशी का पारावार न था... इंडिया गेट के बारे में तो सार्थक को बताना भी नहीं पड़ा, और वह खुद ही बोला, "मेरी बुक में यह फोटो देखा है मैंने... यह इंडिया गेट है..."

खैर, इसी तरह बच्चों की खुशी से आनन्दित होते हम प्रगति मैदान से होते हुए पुराना किला पहुंचे, और फिर कुछ ही क्षण में चिड़ियाघर का प्रवेश द्वार दिख गया... कार को पार्किन्ग में ले जाकर खड़ा किया, और चारों मेन गेट की ओर चल दिए... बच्चे आगे-आगे भाग रहे थे, सो, हम दोनों ने एक-एक बच्चे का हाथ पकड़ लिया, और साथ चलाना शुरू कर दिया... अब हमारे सामने ही सड़क के पार चिड़ियाघर का प्रवेशद्वार था, सो, सार्थक अचानक हाथ छुड़ाकर भागा... मैं घबरा गया, तुरंत भागकर उसे पकड़ा, और डपटा, "तुम्हें कई बार समझाया है, इस तरह सड़क पार करने के लिए भागते नहीं हैं..."

सार्थक तुरंत बोला, "सॉरी पापा, लेकिन सामने ही तो है चिड़ियाघर..."

मैंने जवाब दिया, "हां बेटे, सामने ही है, लेकिन सड़क पार करने के बारे में मैंने जो समझाया था, वह हमेशा याद रखने वाली बात थी, और तुमने वादा भी किया था..."

सार्थक ने फिर कहा, "सॉरी पापा, मैं जोश-जोश में भूल गया था... लेकिन यहां तो कहीं भी रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग दिख ही नहीं रही है... अब क्या करेंगे हम...?"

मैंने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फिराया, और बोला, "मुझे खुशी है कि तुम्हें रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग के बारे में याद है... लेकिन जहां जेब्रा क्रॉसिंग नहीं होती, वहां सड़क पार करने के लिए हमें कुछ अलग नियमों का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि किसी गाड़ी से टक्कर न हो जाए..."

सार्थक के चेहरे पर एकदम उत्सुकता के भाव आए, और बोला, "कौन-से नियम, पापा...?"

मैंने कहा, "बेटे, सड़क पार करने से पहले किनारे पर खड़े होकर सबसे पहले हमें अपनी दाईं ओर देखना होता है, क्योंकि ट्रैफिक हमेशा वहीं से आता है... जब वह दिशा खाली हो, हमें बाईं ओर देखना होगा, और जब वह भी खाली मिले, फिर से दाईं तरफ देखो, और आराम से सड़क पार कर लो..."

सार्थक मुस्कुराया, "यह तो आसान है, पापा... पहले राइट हैन्ड की तरफ देखो, फिर लेफ्ट, और फिर राइट... ठीक है न...?"

मैंने उसकी पीठ थपथपाई, "हां बेटे, बिल्कुल ठीक है..."

इसके बाद हम चारों ने सड़क पार की, और प्रवेशद्वार तक पहुंच गए... प्रवेश टिकट के लिए लाइन में लगे, टिकट लिया, और कुछ ही पलों के बाद चिड़ियाघर के अंदर...

तरह-तरह के ढेरों देसी-विदेशी जानवर और पक्षी देखकर बच्चे पागल-से हुए जा रहे थे, और हम दोनों मियां-बीवी उन्हें खुश देखकर खुश हो रहे थे...

शेर, बाघ, चीता, तेंदुआ, हाथी, भालू, जिराफ, मोर, तोता, बंदर, बतख, हंस, बगुले जैसे पशु-पक्षी तो सार्थक अपनी किताबों में तस्वीरों में पहले भी देख चुका था, लेकिन सफेद बाघ (रॉयल बंगाल टाइगर), ईमू (शुतुरमुर्ग जैसा दिखने वाला पक्षी), दरियाई घोड़ा (हिप्पोपोटामस), और विशेषकर गैन्डा देखकर तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा... लगभग सभी जानवरों के बाड़ों के साथ खड़े होकर बच्चों ने तस्वीरें भी खिंचवाईं, और मस्ती करते रहे...


सबसे ज़्यादा दिलचस्प यह रहा कि अपनी मस्ती में दोनों बच्चों को थकान भी महसूस नहीं हुई, और तीन-चार घंटे कब बीत गए, हमें पता ही नहीं चला...

खैर, चिड़ियाघर की हमारी सैर खत्म हुई, और हम बाहर आकर पार्किन्ग में पहुंचे, और सार्थक की अगली फरमाइश थी, "पापा, प्लीज़ आज मम्मी से कहो कि वह पीछे बैठ जाएंगी, और मैं और निष्ठा आगे की सीट पर बैठेंगे, क्योंकि हमें रास्ते में आने वाली सारी चीज़ें करीब से देखनी हैं..."

मैंने फिर उसके सिर पर हाथ फिराया, और कहा, "बेटे, क्या आप चाहते हो कि हमारी कार किसी और कार से टकरा जाए...?"

सार्थक के चेहरे पर उलझन के भाव आए, और वह बोला, "मैं कुछ समझा नहीं, पापा... इसका क्या मतलब हुआ...?"

मैंने जवाब दिया, "बेटे, सुबह जब आप चिड़ियाघर आ रहे थे, कभी इस खिड़की पर, कभी उस खिड़की पर जा रहे थे न...?"

सार्थक ने तुरंत कहा, "हां पापा, वह तो हम इसलिए कर रहे थे, ताकि सभी चीज़ों को ठीक तरह से देख सकें... क्योंकि रेलगाड़ी बाईं खिड़की से ज़्यादा साफ दिखी थी, और वह तीन सिर वाली मूर्ति दाईं खिड़की से... फिर इंडिया गेट भी हमें दाईं खिड़की से ज़्यादा करीब दिख रहा था..."

मैं मुस्कुराया, और बोला, "बस बेटे, यही वजह होती है इस नियम की... बच्चों को कभी भी आगे की सीट पर चलाने वाले के साथ नहीं बैठना चाहिए, क्योंकि आप लोग बिल्कुल शांत होकर नहीं बैठ सकते... और इसके अलावा, भगवान न करे, अगर कभी टक्कर हो भी गई, तो आगे की सीट पर बैठे होने की वजह से बच्चों को बहुत ज़्यादा चोट लग सकती है..." 

सार्थक एकदम शांत हो गया, "हां, आप सही कह रहे हैं... अगर टक्कर हुई तो यहां मेरा सिर कांच से टकराएगा, और बहुत सारा लाल-लाल खून आ जाएगा... और अगर मैं पीछे की सीट पर बैठूंगा, तो मैं सिर्फ आगे की सीट से टकराऊंगा, और शायद खून नहीं आएगा..."

मैंने बहुत प्यार से अपने समझदार बेटे को बांहों में लिया, और उसका माथा चूमकर बोला, "शाबास बेटे, तुम सचमुच बहुत समझदार हो..."

लेकिन सार्थक अगर सवाल न करे, तो उसे सार्थक कौन कहे... फिर बोला, "लेकिन पापा, अगर टक्कर हो गई, तो आप और मम्मी को भी तो खून आ सकता है... है न...?"

इस बार सारे दिन में पहली बार जवाब हेमा ने दिया, "हां सार्थक, तुम सही कह रहे हो, बेटे... इसीलिए पापा से कहो, कार धीरे चलाया करें, ताकि किसी और कार से टक्कर न हो जाए..."

सार्थक तुरंत मेरी तरफ घूमा, और बोला, "प्रॉमिस कीजिए, पापा... आप कार को धीरे ही चलाओगे, और मैं भी प्रॉमिस करता हूं, आपसे कार को तेज़ चलाकर दूसरी कारों को रेस में हराने के लिए नहीं कहूंगा..."

मैं मुस्कुराया, और बोला, "शाबास बेटे, अगर आप ज़िद नहीं करोगे, तो मैं भी कार तेज़ नहीं चलाऊंगा..."

हेमा ने तुरंत मेरी बांह थामी, और निष्ठा को गोद में लिए-लिए सार्थक के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, "बढ़िया... फिर हमें कोई कभी नहीं हरा पाएगा... हम सबसे जीत जाएंगे... मौत से भी..."

===============================================================
इस आलेख की पहली और तीसरी कड़ियां भी पढ़ें...


* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...
===============================================================

Monday, September 5, 2011

कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...

सार्थक स्कूल से लौटा तो बेहद घबराया हुआ था... इत्तफाक से मैं घर पर था, सो, मुझे देखते ही मुझसे कसकर लिपट गया, और बोला, "पापा, पापा... वहां एक आदमी के सिर से बहुत सारा लाल-लाल खून निकल रहा है..."

मैं भागा-भागा बाहर तक गया तो देखा, मेरे घर से कुछ ही दूरी पर सड़क के बीचोंबीच एक आदमी पड़ा है, जिसके सिर से बुरी तरह खून बह रहा है, सारी सड़क सुर्ख हो चुकी थी... भागकर मैंने अपनी कार उठाई, और कुछ तमाशबीनों की मदद से उस व्यक्ति को सीधा अस्पताल ले गया, जहां डॉक्टरों ने बिना समय गंवाए उसका इलाज शुरू कर दिया...

उसकी किस्मत अच्छी थी, वक्त पर ऑपरेशन हो जाने की वजह से उसकी जान बच गई, लेकिन क्या पता, कितने मासूम सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं...

मैं रात को घर वापस पहुंचा, तो सार्थक ने पूछा, "उन अंकल को क्या हुआ था, पापा...?"

मैंने बिल्कुल शांत स्वर में उसे बताया, "बेटे, उन अंकल को एक कार वाले ने टक्कर मार दी थी, इसलिए उनके सिर पर काफी चोट लग गई थी... अब डॉक्टरों ने उनके सिर पर पट्टी बांध दी है, इसलिए वह ठीक हो जाएंगे, लेकिन अभी कई दिन लगेंगे..."

सार्थक ने तुरंत प्रतिक्रिया दी, "लेकिन कार वाले अंकल को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्या...?"

मैं तब तक सड़क पर मौजूद तमाशबीनों में से अस्पताल पहुंचे कुछ लोगों से पूरी बात जान चुका था, सो, बोला, "बेटे, सारी गलती कार वाले अंकल की भी नहीं है... जिन अंकल को चोट लगी थी, वह गलत जगह से सड़क पार कर रहे थे... इसलिए उनकी टक्कर हुई..."

सार्थक के चेहरे पर हैरानी के भाव आए, और मुझसे बोला, "गलत जगह का मतलब...?"

मैं मुस्कुराया, और बेटे को बताया, "बेटे, सड़क पार करने के लिए हर चौराहे पर जेब्रा क्रॉसिंग बनी होती है, और पैदल लोगों को वहीं से सड़क पार करनी चाहिए..."

अब सार्थक के चेहरे पर उत्सुकता के भाव थे, बोला, "जेब्रा क्रॉसिंग क्या होती है, पापा...?"

मैंने फिर बताया, "बेटे, चौराहों के पास सड़कों पर जो काली-सफेद पट्टी रंग से बनी होती है, उसी को जेब्रा क्रॉसिंग कहते हैं... और सड़क पार करने के लिए वही सही जगह होती है... इसके अलावा रेड लाइट के बारे में तुम जानते ही हो... जब बत्ती लाल हो तो रुक जाना चाहिए..."

मेरी बात को बीच में ही काटकर उत्साहित स्वर में सार्थक बोला, "हां, पापा... हमारी मैडम ने भी सिखाया था... लाल बत्ती पर रुकना चाहिए, पीली बत्ती पर ध्यान ने देखना चाहिए, और हरी बत्ती हो जाने पर ही चलना चाहिए... और मैडम ने कहा था, जैसे गाड़ियों के लिए लालबत्ती होती है, वैसे ही पैदल चलने वालों के लिए भी हर चौराहे पर बत्ती लगी होती है, जिसके हरे होने पर ही सड़क पार करनी चाहिए... अब मैं यह भी याद रखूंगा कि हरी बत्ती हो जाने पर भी सड़क जेब्रा क्रॉसिंग से ही पार करनी चाहिए..."

मैंने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फिराया, और उठकर जाने ही लगा था, लेकिन सार्थक के सवाल इतनी जल्दी कहां खत्म होने वाले थे, वह बोला, "पापा, पापा... अगर आपको मैं नहीं बताता, और आप उन अंकल को डॉक्टर अंकल के पास नहीं ले जाते, तो वह भगवान जी के पास चले जाते न...?"

मैं बेहद उद्वेलित हो उठा, और बोला, "हां बेटे... अगर तुम मुझे नहीं बताते तो ऐसा ही होता..."

सार्थक ने मेरी बात को ध्यान से सुना और उसका अगला सवाल था, "लेकिन फिर कोई और अंकल आपसे पहले उन अंकल को डॉक्टर के पास क्यों नहीं ले गया...?"

मैं क्या जवाब देता, फिर भी बोला, "बेटे, शायद सब अपने-अपने काम से जा रहे होंगे, इसलिए जल्दी में होंगे... लेकिन आपको कभी कोई ऐसा हादसा दिखाई दे, तो तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाना..."

सार्थक हंसकर बोला, "जी पापा, मैं जरूर अस्पताल ले जाऊंगा..."

बस, मैंने उसे सीने से लगाया, और खाना खाने चल दिए...

===============================================================
इस आलेख की अगली दो कड़ियां भी पढ़ें...


* क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...
* परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...

===============================================================

शायद आप यह भी पसंद करें...

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...