Wednesday, June 26, 2013

हैरी पॉटर की फिल्में : बच्चों को क्यों दिखाई जानी चाहिए...?


हिट फिल्मों पर चर्चा चल रही थी, और ज़िक्र आया 'हैरी पॉटर' का... जब मैंने बताया कि मुझे ये फिल्में बेहद पसंद हैं, तो एक साथी ने हैरान होते हुए पूछा, "इस उम्र में बच्चों वाली फिल्में आपको कैसे पसंद आती हैं...?" साथी के सामने तो मैं सिर्फ मुस्कुराकर रह गया, और सिर्फ इतना कहा, "अब मेरी उम्र पर मेरा ज़ोर नहीं है, भाई..."

लेकिन इसके बाद इस बारे में सोचा - और पाया, कि आमतौर पर जितनी शिक्षाप्रद बच्चों की फिल्में होती हैं, उतनी 'हम लोगों की फिल्में' नहीं होतीं...

दरअसल, बच्चों की फिल्मों की कहानियां बारीकी से लिखी जाती हैं, और वही उन्हें बाकियों से बेहतर बना देती हैं... बच्चों की कई फिल्में, यहां तक कि एनिमेशन फिल्में भी कई देखी हैं, अपने बच्चे होने के बाद... दरअसल, पत्नी की ज़िद रहती है कि कोई भी फिल्म बच्चों को दिखाने से पहले एक बार खुद देख लेनी चाहिए, क्योंकि आजकल के लेखकों का कोई भरोसा नहीं है, और बच्चे जो भी फिल्म में सुनेंगे, उसी को ज़रूर दोहराएंगे...

कुछ का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूंगा... 'द आन्ट बुली' (The Ant Bully) एक ऐसे बच्चे की कहानी है, जो चींटियों को परेशान करता है, फिल्म में चींटियां उसे उठाकर अपने बिल में ले जाती हैं, और सज़ा के तौर पर उस बच्चे को चींटियों के साथ उनकी बस्ती में कुछ दिन रहना पड़ता है... उन्हीं दिनों में बच्चा चींटियों की मेहनत, एक-दूसरे का साथ देने, और हिम्मत नहीं हारने जैसे गुण सीख जाता है, और घर लौट आता है... इस फिल्म की शानदार एनिमेशन क्वालिटी के अलावा इसमें जो खास बात है, वह यही है कि पसंद की फिल्मों (एनिमेशन) से सीखी हुई बातें ज़्यादा देर तक याद रख पाते हैं, और हमारे लिए (माता-पिता के लिए) भी उन्हें अच्छी बातें सिखाना आसान हो जाता है...

ऐसी ही एक फिल्म शृंखला है - 'टॉय स्टोरी' (Toy Story), जिसके तीन भाग हैं... यह एक बढ़ते बच्चे के प्यारे और संभालकर रखे गए खिलौनों की कहानी है, जो जीवंत हैं... बोलते हैं, चलते हैं, भावुक होते हैं, लेकिन जब उनका मालिक या कोई और सामने नहीं होता... यानि, यह फिल्म खिलौनों की भावनाएं ज़ाहिर करती है... वे कैसा महसूस करते हैं, जब उनका मालिक उन्हें सबसे ज़्यादा प्यार करने के बावजूद नया खिलौना मिल जाने पर उन्हें छोड़ देता है... वे कैसा महसूस करते हैं, जब उन्हें नए दोस्त मिलते हैं... इसके अलावा यह फिल्म जो सबसे अच्छी बात सिखाती है, वह है दोस्ती निभाना और किसी भी परिस्थिति में दोस्तों का साथ न छोड़ने की आदत...

यही बात सिखाने वाली एक फिल्म हिन्दी में भी याद आ रही है - 'चिल्लर पार्टी'... इस फिल्म में भी अमीर-गरीब का भेद भूलकर दोस्त का साथ देना, सही के लिए किसी से भी जूझ जाना, और जानवरों से भी प्यार करना सिखाया गया है...

खैर, ऐसी बहुत-सी फिल्में हैं, जिनका यहां ज़िक्र किया जा सकता है, लेकिन अब बात करूंगा उस फिल्म शृंखला की, जिसकी वजह से आज लम्बे अरसे बाद लिखने बैठा हूं... हैरी पॉटर... इस शृंखला में जेके रॉलिंग ने सात उपन्यास लिखे, जिन पर आठ भागों में फिल्म शृंखला तैयार की गई... ये फिल्में दुनियाभर में कितनी हिट रहीं, यह बताने की ज़रूरत नहीं है... हैरी पॉटर की सबसे ज़्यादा बड़ी शिक्षा यही है कि परिवार और दोस्तों का प्यार आपकी सबसे बड़ी ताकत होता है...




अभी चार-पांच साल पहले तक मैंने न हैरी पॉटर शृंखला का कोई उपन्यास पढ़ा था, न कोई फिल्म देखी थी, जबकि फिल्म के भी पांच भाग रिलीज़ हो चुके थे... यह किस्सा शायद वर्ष 2008 का है, जब मेरा बेटा सार्थक तीन साल का भी नहीं हो पाया था... अचानक एक दिन एक मित्र ने सलाह दी कि सार्थक को 'हैरी पॉटर' दिखाओ, मैंने हंसी में उड़ा दिया, कि ढाई-तीन साल का बच्चा जादू वाली फिल्में भला क्या देखेगा... लेकिन मित्र ने सिर्फ सलाह ही नहीं दी, पहली और दूसरी फिल्म की सीडी भी दी... फिर एक शनिवार बहुत ज़्यादा बोर होने पर देर रात पहला भाग देखने बैठ गया, और सुबह तक दोनों भाग निपटा डाले... सुबह उठते ही मित्र को फोन किया, और पूछा, कितने पार्ट्स हैं तुम्हारे पास... उसके पास सिर्फ दो ही थे, सो, उसी दिन बाज़ार जाकर बाकी तीन खरीद लाया... दरअसल, उस वक्त तक पांच ही भाग रिलीज़ हुए थे...

इसके बाद मौका लगने पर किताबें भी दरियागंज से (वहां पुरानी किताबें सस्ती मिलती हैं, भाई) खरीदकर लाया, और पढ़ीं, जबकि अंग्रेज़ी किताबें आमतौर पर नहीं पढ़ता हूं... मज़ा आया... फिर वर्ष 2010 में जब इस शृंखला की सातवीं फिल्म भी रिलीज़ हो गई, तब मैंने सार्थक को एक दिन यह फिल्म शृंखला पहले भाग से दिखानी शुरू की, और आश्चर्यजनक रूप से उसे बेहद पसंद आई... और वर्ष 2011 में जब इसका आखिरी भाग रिलीज़ हुआ, तो फिल्म के विज्ञापन देख-देखकर सार्थक ने अपने-आप ज़िद की कि उसे यह भी देखना ही है... आखिर, देखकर आए...

यकीन मानिए, यह आज भी सार्थक की पसंदीदा फिल्म शृंखला है, जबकि उसे आमतौर पर बहुत कम फिल्में पसंद आती हैं... मैंने कई बार सोचा, कार्टून फिल्में देखने वाला अब साढ़े सात साल का हो चुका सार्थक ऐसी फिल्म कैसे पसंद कर पाया... फिर समझा, हमारे मुकाबले बच्चे फिल्मों से ज़्यादा जल्दी जुड़ जाते हैं... दरअसल, जब भी वोल्डेमॉर्ट (फिल्म का खलनायक Lord Voldemort) आता, सार्थक घबराकर मुझसे या अपनी मां से लिपट जाता था, और पूछता था, "अब हैरी पॉटर मर तो नहीं जाएगा...? अब हैरी क्या करेगा...? वोल्डेमॉर्ट हैरी के दोस्तों रॉन वीज़ली (Ronald Weasley) या हरमॉयनी ग्रेंजर (Hermione Granger) को तो नहीं मार देगा...?" कभी सोचकर देखिए, हम आमतौर पर कभी इस बात की चिंता नहीं करते कि हीरो को विलेन मार देगा, क्योंकि हम जानते हैं कि हीरो तो मर ही नहीं सकता, लेकिन बच्चे फिल्मों को वास्तविक कहानी समझकर उनसे जुड़े रहकर ही देखते हैं...




और यही वजह है कि वे (बच्चे) हमारी तुलना में फिल्मी बातें सीखते भी जल्दी हैं... सो, अब बात करूंगा उन खासियतों की, जिनकी वजह से यह फिल्म मैंने बच्चों को दिखाना अच्छा समझा, और जिनकी वजह से मुझे भी यह फिल्म बेहद पसंद आई...

इस शृंखला की एक खास बात यह भी है कि इसकी कहानी पूरी तरह गुंथी हुई है, और इधर-उधर नहीं भटकती... इसके बावजूद हर भाग (छठे और सातवें को छोड़कर) अपने-आप में एक पूरी फिल्म है, सो, मज़ा लिया जा सकता है... हर भाग में हैरी पॉटर की उम्र एक साल बढ़ती है, और वह नई-नई बातें सीखता है... कहानी में चरित्र बेहद प्रभावी ढंग से रचे गए हैं, और इतने जीवंत चित्रण की वजह से वास्तविक ही लगते हैं...



पहले भाग 'हैरी पॉटर एंड द फिलॉस्फर्स स्टोन' (Harry Potter and the Philosopher's Stone / Harry Potter and the Sorcerer's Stone) के बारे में... इस भाग में बच्चा सीख सकता है, कि आपका भविष्य आपके अपने फैसलों से प्रभावित होता है... आपका भविष्य सिर्फ सपने देखने से नहीं, मेहनत करने और अच्छे काम करने से ही बदलेगा... इस भाग में एक दर्पण का ज़िक्र है - शहिवाख् का दर्पण (Mirror of Erised), जो सिर्फ इच्छाएं दिखाता है... इसका नाम भी लेखिका जेके रॉलिंग ने इच्छा के स्पेलिंग को उलटकर ही रचा है - DESIRE >< ERISED... हिन्दी में अनूदित फिल्म में इसे ख्वाहिश से उलटकर नाम दिया गया है... नायक हैरी पॉटर, जो सिर्फ 11 साल का है और एक वर्ष की उम्र में माता-पिता को खो चुका है, इत्तफाक से दर्पण के पास पहुंच जाता है, और उसमें खुद को माता-पिता के साथ देखता है (दरअसल, माता-पिता का साथ ही उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश है)... तब हॉगवर्ट्स स्कूल ऑफ विचक्राफ्ट एंड विज़ार्ड्री (Hogwarts School of Witchcraft and Wizardry) के हैडमास्टर एल्बस डम्बलडोर (Albus Dumbledore) उसे समझाते हैं, यह दर्पण सिर्फ इच्छाओं को पूरी होते हुए दिखाता है, उन्हें असल में पूरा नहीं करता, और इसमें देख-देखकर खुश होते रहने से इच्छाएं मजबूत होती चली जाएंगी, और तुम नाकारा हो जाओगे... अब यह बात किसी बच्चे को मां-बाप खुद सिखाना चाहें तो क्या-क्या करना पड़ेगा, यह आप खुद ही सोचकर देखिए...



फिल्म के आखिरी दृश्यों में प्रोफेसर क्विरिनस क्विरल (Quirinus Quirrell) के शरीर में छिपा वोल्डेमॉर्ट एक बार हैरी पॉटर पर हमला करता है, और उस दौरान हैरी के छूने भर से क्विरल मिट्टी का ढेर बनकर गिर जाता है, और वोल्डेमॉर्ट को क्विरल का शरीर त्यागकर धुआं बनकर उड़ जाना पड़ता है... इस बारे में भी हैरी की हैरानी को दूर करते हुए एल्बस डम्बलडोर उसे समझाते हैं कि चूंकि हैरी के पास परिवार और दोस्तों के प्यार की शक्ति है, इसलिए हर बुरे आदमी की तरह वोल्डेमॉर्ट भी उस शक्ति से डर गया है... अब किसी भी बच्चे को, जो हैरी पॉटर से खुद को फिल्म देखने की वजह से जोड़ चुका है, यह समझाना बेहद आसान हो जाता है कि परिवार और दोस्तों का प्यार काफी बड़ी शक्ति होती है...


इसी तरह दूसरे भाग - हैरी पॉटर एंड द चैम्बर ऑफ सीक्रेट्स (Harry Potter and the Chamber of Secrets) - से भी हर देखने वाले को यह शिक्षा मिलती है कि हर परिस्थिति में दोस्तों का साथ देते रहने, और मुश्किलों से हार नहीं मानने वाले को अविश्सनीय परिस्थितियों में भी कामयाबी मिल ही जाती है... इसके अलावा गलत होने पर अपने गुरु (प्रोफेसर गिल्डरॉय लॉकहार्ट - Gilderoy Lockhart) के खिलाफ जाना भी गलत नहीं होता, यह भी इसी भाग में देखने को मिलता है... लॉकहार्ट एक ऐसा अध्यापक है, जो दरअसल, दूसरे जादूगरों के कारनामों को अपना बताने और साबित करने के लिए उनकी याददाश्त मिटा दिया करता है, और इसी आधार पर प्रसिद्धि पाकर हॉगवर्ट्स में नौकरी पा जाता है... इसके बाद मुसीबत पड़ने पर वह सब कुछ छोड़-छाड़कर भागने की कोशिश करता है, तो हैरी और रॉन उसे रोकते हैं... इतनी हिम्मत वही बच्चा जुटा सकता है, जो सच्चा होगा, और हमेशा सच का साथ देता होगा...


तीसरे भाग - हैरी पॉटर एंड द प्रिज़नर ऑफ अज़कबान (Harry Potter and the Prisoner of Azkaban) - में एक बेहद महत्वपूर्ण पाठ बच्चों को पढ़ाया गया है... इस भाग में सामने आए डिमेन्टर्स (जो दरअसल अज़कबान जेल के पहरेदार हैं), जिन्हें अनूदित फिल्म में तम-पिशाच कहा गया है... इनके बारे में दिखाया गया है कि ये खुशियों को हर लेते हैं, और इनके आने पर ऐसा महसूस होने लगता है, जैसे खुशियों ने दुनिया का दामन छोड़ दिया हो... उन हालात में रीमस लूपिन (Remus Lupin) नामक एक अध्यापक हैरी पॉटर को उनसे बचने का मंत्र सिखाता है, जिसे Patronus Charm (Expecto Patronum) कहा गया और हिन्दी में उसके लिए 'पितृदेव संरक्षणम्' का इस्तेमाल किया गया... इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ है, मेरे पूर्वज मेरी रक्षा करें... कठिनाइयों से भरे समय में माता-पिता और पूर्वजों पर विश्वास बढ़ाने की सीख देने के अलावा इस मंत्र से जुड़ी एक और बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे पढ़ने के लिए किसी बेहद खुशगवार वक्त को याद करना ज़रूरी है... अब किसी बच्चे को हैरी पॉटर फिल्म के मुकाबले ज़्यादा आसानी से सिखाकर दिखाइए कि बुरे वक्त में निराश और हताश होने के स्थान पर अच्छी बातें याद करे...

इसी भाग में लूपिन सारी क्लास को एक साथ 'रिडिक्यूलस' (Riddikulus) मंत्र सिखाते हैं, जिसे हिन्दी में 'हास्यांतरम्' कहा गया है... इसमें दिखाया गया है कि कोई बहुरूपिया अथवा Boggart (कोई भी रूप धरने में सक्षम जादुई प्राणी) हमेशा उस चीज़ का रूप धारण करता है, जिससे सामने वाला सबसे ज़्यादा डरता है, और यह मंत्र किसी हंसाने वाली चीज़ का ध्यान करते हुए सही तरीके से इस्तेमाल करने पर डरावने बहुरूपिये को किसी हास्यास्पद चीज़ में बदल देता है... अब यह भी लगभग वैसी ही बात है... अगर आप डराने वाली परिस्थितियों में बिना घबराए, किसी हंसाने वाली चीज़ का तसव्वुर करने में कामयाब हो गए, तो डर भाग जाएगा...

चौथे भाग - हैरी पॉटर एंड द गॉबलेट ऑफ फायर (Harry Potter and the Goblet of Fire) - में वोल्डेमॉर्ट की चाल में फंसकर हैरी को एक ऐसे मुकाबले में भाग लेना पड़ता है, जिसमें उसकी जान तक जा सकती है... लेकिन यहां भी फिल्म सिखाती है, हिम्मत नहीं हारो, और डटे रहो, कामयाबी मिल ही जाएगी... दोस्ती निभाने वाली शिक्षा इस भाग में भी एक बार फिर दी गई है...

हिम्मत बनाए रखने की शिक्षा देने के लिहाज़ से पांचवां भाग - हैरी पॉटर एंड द ऑर्डर ऑफ द फीनिक्स (Harry Potter and the Order of the Phoenix) - बेहद महत्वपूर्ण है... हैरी पॉटर और उसके हेडमास्टर एल्बस डम्बलडोर को झूठा करार देकर अलग-थलग कर दिया जाता है... डम्बलडोर भी खतरों के प्रति आशंकित होकर हैरी से दूरी बना लेते हैं... स्कूल पर उन्हीं लोगों का कब्ज़ा हो जाता है, जो हमारे दोनों नायकों को झूठा करार दे रहे हैं... ऐसे में बहुत-से सहपाठी भी हैरी को दुश्मन मान लेते हैं... अब यह भाग सिखाता है, ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत मत हारो, और किसी के भी भरोसे न रहकर खुद ही प्रयास करो, और मुश्किल का सामना करो... दरअसल, हैरी और उसके दोस्तों को साफ दिखने लगता है कि बच्चों को जादू नहीं सिखाया जा रहा है, जिससे बुरी ताकतों का मुकाबला करना वे नहीं सीख पाएंगे... तो उस समय हैरी पॉटर खुद उनके लिए अध्यापक की भूमिका निभाता है, और सबको रक्षक जादू करने में प्रवीण कर देता है...

छठे भाग - हैरी पॉटर एंड द हाफ-ब्लड प्रिंस (Harry Potter and the Half-Blood Prince) - से बच्चे यह सीख सकते हैं कि हर आंखों देखी बात सच्ची नहीं होती... यानि, ज़रूरी नहीं है कि जो जैसा दिखता है, असल में वैसा ही हो... वास्तव में छठा भाग देखने के बाद आप प्रोफेसर सेवेरस स्नेप (Severus Snape) से उसी तरह नफरत करने लगेंगे, जिस तरह हैरी करने लगा है, लेकिन बाद में आठवें भाग में असलियत सामने आने पर वह कालांतर में अपने बेटे का नाम भी एल्बस सेवेरस पॉटर रखेगा... बहरहाल, छठे भाग में दृढ़निश्चयी होने की भी शिक्षा दी गई है, कि कैसे हैरी पॉटर अपने उद्देश्य के लिए पहले के भागों की तरह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, भले ही उससे स्कूल के अनुशासन के नियम टूटते हों...

फिल्म का सातवां और आठवां भाग दरअसल उपन्यास के सातवें और अंतिम भाग को बांटकर बनाई गई फिल्में हैं... हैरी पॉटर एंड द डेथली हालोज़ (Harry Potter and the Deathly Hallows) में सभी शिक्षाएं एक बार फिर दी जाती हैं, और आखिरकार बच्चा सीख सकता है कि जीत हमेशा हिम्मत बनाए रखने, सच्चाई का साथ देने और प्यार करने वाले की होती है, नफरत करने वाले की नहीं...

इसके अलावा भी हैरी पॉटर की फिल्में (या उपन्यास) बहुत कुछ सिखाती हैं, बच्चों का मनोरंजन करते हुए, लेकिन उनके बारे में फिर कभी फुर्सत मिलने पर... वैसे बता दूं कि किश्तों में इतना लिखने में भी तीन दिन लगे हैं, लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि अगर आप भी 'शिनचैन' की भाषा से दुखी हैं, तो हैरी पॉटर दिखाइए, फायदे में रहेंगे...

2 comments:

  1. How are you sir? Missing our lunch time discussions....

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    1. Main bilkul maze mein hoon... Itna zyaada miss karti hai, to kisi din lunch ke liye aaja... :-)

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