अपने बेटे सार्थक और उसकी हरकतों को देख-देखकर मैं हमेशा बेहद खुशी महसूस करता हूं, क्योंकि मेरे माता-पिता के मुताबिक वह बिल्कुल मेरे जैसा है, और उसके शौक भी मुझसे मिलते-जुलते हैं...
मेरी तरह उसे भी कम्प्यूटर पर वीडियो गेम खेलने, गाने सुनने और फिल्में देखने का शौक है... मेरी ही तरह उसे कलाबाजियां खाने, जिमनास्टिक्स, और मार्शल आर्ट्स में काफी रुचि है... वह मेरी ही तरह ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर चढ़ता रहता है... मेरी तरह सार्थक भी चित्रकारी करना और रंगों से खेलना पसंद करता है... मेरी तरह उसे भी कार में घूमने का शौक है...
मैं लगभग सभी पिताओं की तरह अपने बेटे की हर फरमाइश को पूरा करने की इच्छा भी रखता हूं, सो, उसके सभी शौक मेरे जरिये पूरे हो जाते हैं, और इसीलिए वह हमेशा मेरे साथ बेहद खुश रहता है...
वैसे मुझे इन सबके अलावा पढ़ने-लिखने और कार चलाने का भी काफी शौक है, लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें थीं... छोटी उम्र की वजह से सार्थक अभी अच्छी तरह पढ़ना-लिखना नहीं जानता, और अभी गाड़ी चलाने की भी उम्र नहीं हुई उसकी...
बहरहाल, एक शाम हम दोनों बाज़ार गए थे, और वापसी में साहबज़ादे ने फरमाइश की, "पापा, मुझे भी कार चलाना सिखाइए न...?"
मैंने घूमकर उसकी ओर देखा, और मुस्कुराकर कहा, "अभी तुम बहुत छोटे हो, सार्थक... अभी कई साल लगेंगे तुम्हें गाड़ी चलाना सीखने के लायक बनने में..."
सार्थक के चेहरे पर उलझन के भाव आए, और वह बोला, "सीखने लायक बनने का क्या मतलब होता है, पापा...?"
मैंने एक किनारे गाड़ी को रोका, और उसके सिर पर हाथ फिराकर प्यार से बोला, "बेटे, गाड़ी चलाना सीखने से पहले उनसे जुड़े कुछ कायदे याद करना ज़रूरी होता है... बिल्कुल वैसे ही, जैसे हिन्दी या अंग्रेज़ी की कहानी-कविताएं पढ़ाने से पहले आपके स्कूल में आपको क-ख-ग और ए-बी-सी सिखाई गई थी..."
सार्थक को कुछ-कुछ समझ आया, और उसका अगला सवाल था, "ओह, तो क्या गाड़ी चलाने के लिए भी कोई क-ख-ग होती है क्या...?"
मैंने ज़ोर से हंसा, और बोला, "हां बेटे, होती है... और उसे सीखने में ज़्यादा समय भी नहीं लगता..."
सार्थक तपाक से बोला, "तो फिर आप सिखाइए मुझे..."
सार्थक तपाक से बोला, "तो फिर आप सिखाइए मुझे..."
मैंने कहा, "पहले घर चलते हैं, वरना मम्मी को चिंता हो जाएगी... और मैं वादा करता हूं, घर चलकर आपको नई क-ख-ग सिखा दूंगा..."
बच्चों से कभी झूठे वादे नहीं करने का फायदा यह होता है कि वे हमेशा हमारी बात मान लेते हैं, सो, वही हुआ... सार्थक तुरंत बोला, "ठीक है, पापा... घर चलकर ही सही..."
हम घर पहुंचे, और सार्थक तुरंत कपड़े बदलकर मेरे साथ आकर लेट गया, और बोला, "अब शुरू करें, पापा...?"
उसका उत्साह मुझे हमेशा पसंद आता है, इसलिए दिन-भर की थकान के बावजूद मैंने हामी भर दी...
सार्थक चेहरे पर बेहद उत्सुक भाव लिए मेरे बोलने का इंतज़ार कर रहा था, जब मैंने कहा, "सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि गाड़ी चलाने के लिए पहला कायदा यह होता है कि चलाने वाले की उम्र कम से कम 18 साल की होनी चाहिए..."
सार्थक तुरंत मायूस स्वर में बोला, "इसका मतलब मुझे बहुत साल इंतज़ार करना होगा, क्योंकि मैं तो अभी सिर्फ छह साल का हूं...?"
मैंने हां में सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए कहा, "हां बेटे, कार चलाने के लिए तो इंतज़ार करना होगा, लेकिन उसके कायदे आप अभी से सीख सकते हो..."
सार्थक के चेहरे पर फिर मुस्कान आ गई, और बोला, "ठीक है फिर... सिखाइए मुझे..."
मैंने बोलना शुरू किया, और सार्थक बहुत ध्यान से सुन रहा था, "बेटे, सबसे पहला नियम तो आप अब जान ही गए हो, लेकिन 18 साल का होने के बाद भी जब आपके पास गाड़ी चलाने का लाइसेंस न हो, आपको गाड़ी नहीं चलानी चाहिए..."
सार्थक फिर उलझन में आ गया, "लेकिन पापा, अभी आपने कहा, गाड़ी चलाने के लिए उम्र 18 साल होनी चाहिए, फिर यह लाइसेंस क्या होता है...?"
मैंने बताया, "बेटा, आप जब 18 साल के हो जाते हैं, आप यातायात कार्यालय में जाकर गाड़ी चलाना सीखने के लिए एक अर्जी देते हैं, और वे आपको प्रशिक्षु लाइसेंस (लर्निन्ग लाइसेंस) जारी कर देते हैं... उसके कुछ समय के बाद आप गाड़ी चलाना सीखकर वापस उनके पास जाते हैं, ड्राइविंग का टेस्ट देते हैं, तब आपको सड़क पर गाड़ी चलाने का लाइसेंस मिलता है... सो, याद रखना, लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाने का मतलब है, आपको गाड़ी चलाना नहीं आता, और आप सभी के लिए खतरा बन सकते हैं... और हां, बिना लाइसेंस गाड़ी चलाना अपराध भी है..."
सार्थक घबराकर बोला, "इसका मतलब, पुलिस भी पकड़ सकती है... ओके, मैं याद रखूंगा कि गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस होना ज़रूरी है..."
मैं हंसकर बोला, "शाबास बेटे... अब आपको दूसरा नियम बताता हूं... जब आप गाड़ी चलाने निकलें, यह पक्का कर लें, कि गाड़ी सही हालत में है, इसलिए उसकी सर्विस, जांच और देखभाल नियमित रूप से करवाते रहें..."
सार्थक तपाक से बोला, "हां, सही कह रहे हैं आप... एक दिन सामने वाले अंकल भी कह रहे थे, उन्होंने अपनी कार में कोई ऑयल नहीं बदलवाया था, इसलिए रात को सुनसान सड़क पर जब गाड़ी खराब हो गई, वह बहुत डर गए थे... बड़ी मुश्किल से घर पहुंचे थे वह..."
मैंने कहा, "हां बेटे, बिल्कुल सही... इसीलिए गाड़ी को हमेशा बिल्कुल ठीक रखना चाहिए... वैसे इसके अलावा भी दो और बातें हैं, जिनका ध्यान आपको गाड़ी चलाने से पहले रखना होगा... एक, गाड़ी का बीमा हो, और वह नियमित रूप से नवीकृत (रिन्यू) करवाया गया हो..."
सार्थक कतई कुछ नहीं समझा, उलझन-भरे स्वर में बोला, "अब यह बीमा क्या होता है, पापा...?"
मैंने समझाया, "बेटे, अगर आपकी गाड़ी चोरी हो गई तो कितना नुकसान होगा..."
सार्थक उत्तेजित होकर बोला, "अरे, फिर हम नई गाड़ी कैसे लाएंगे, क्योंकि आपने कहा था, बहुत सारे रुपये की आती है गाड़ी..."
मैं मुस्कुराया, "इसीलिए बीमा ज़रूरी होता है, बेटे... अगर आपकी गाड़ी चोरी हो जाए, या उसके साथ कोई एक्सीडेंट हो जाए, जिसमें गाड़ी टूट-फूट जाए, तो जो भी नुकसान होता है, वह बीमा कंपनी देगी, और आपका नुकसान कम से कम होगा... यहां तक कि अगर बीमा ढंग से करवाया जाए तो एक्सीडेंट में आपको या किसी और को चोट लगने पर भी बीमा कंपनी इलाज का पैसा खर्च करेगी..."
सार्थक मुस्कुराया, "ठीक है, पापा... बीमा करवाना भी याद रखूंगा... अब आप दूसरी बात बताओ..."
मैं फिर बोला, "इसके अलावा गाड़ी जो धुआं छोड़ती है, उसकी अधिकतम मात्रा से जुड़ा भी एक नियम बनाया गया है, ताकि शहर में धुआं कम से कम हो, और लोग बीमार न पड़ें..."
सार्थक को फिर एक पुरानी बात याद आई, और बोला, "हां, आपने कहा था, आपकी नानी जी को किसी बीमारी की वजह से सांस लेने में परेशानी होती थी, और इसी वजह से वह भगवान जी के पास भी चली गई थीं..."
मैंने तुरंत कहा, "हां सार्थक, बिल्कुल सही... मेरी नानी जी को दमे की बीमारी थी, जो गाड़ियों के धुएं से भी फैलती है... इसीलिए गाड़ी से धुआं नियंत्रित मात्रा में ही निकलें, इसकी जांच भी करवाते रहनी चाहिए... सो, याद रखना, गाड़ी से जुड़े सभी प्रमाणपत्र पूरे होने चाहिए, और हमेशा उन्हें अपने साथ ही रखना चाहिए, वरना इसके लिए भी पुलिस पकड़ सकती है..."
सार्थक बेचारा पुलिस के नाम से घबराता है, बोला, "अरे बाप रे... क्या गाड़ी से जुड़े हर काम के लिए पुलिस पकड़ लेती है...?"
मैं ज़ोर से हंसा, "हां, पकड़ती तो है, लेकिन यह ज़रूरी भी है, बेटे..."
सार्थक मुस्कुराकर बोला, "ठीक है, पापा... अब आगे बताइए..."
मैंने फिर कहा, "अब नंबर आता है, गाड़ी में लगे शीशों का, जिन्हें आप छेड़ते रहते हो..."
सार्थक तपाक से बोला, "मैं तो नहीं छेड़ता, लेकिन मम्मी बिन्दी ठीक करने के लिए उस शीशे को हिलाती हैं... आपको तो पता ही है, क्योंकि आप उन्हें डांटते भी हो..."
मैंने उसके सिर पर चपत लगाई, और कहा, "मेरी कार के शीशे को मम्मी हिलाती हैं, लेकिन चाचू के स्कूटर के शीशे को तो आप ही हिलाते रहते हो न...?"
सार्थक ने सिर झुकाकर कहा, "हां, वह तो मैं करता हूं... सॉरी... अब नहीं छेड़ूंगा, लेकिन उनके बारे में आप क्या बता रहे थे...?"
मैंने कहा, "वे शीशे गाड़ी चलाते वक्त आपको अपने पीछे चल रहे वाहनों को देखने में मदद करते हैं, ताकि एक्सीडेंट से बचा जा सके... क्योंकि अगर आप पीछे से आती गाड़ी को नहीं देख पाए, और अचानक मुड़ गए, तो टक्कर हो सकती है..."
सार्थक ने तुरंत कहा, "हां, बिल्कुल सही... जैसे आज ही मैं बिना देखे भागकर स्कूल के दरवाज़े से बाहर आ रहा था, और मुझे दिखा ही नहीं कि दूसरी तरफ से एक लड़की आ रही थी... हम दोनों बहुत ज़ोर से टकराए, और गिर गए..."
मैंने उसके सिर पर हाथ फिराया, और कहा, "आप मेरे होशियार बेटे हो, हर बात बहुत जल्दी समझ जाते हो... इसीलिए कार या स्कूटर या मोटरसाइकिल चलाते वक्त शीशे को ऐसी स्थिति में रखना चाहिए, ताकि पीछे से आती गाड़ियों को बिना गर्दन घुमाए हमेशा देखा जा सके..."
सार्थक बोला, "ठीक है, पापा... यह भी याद रखूंगा... अब प्लीज़ यह बताना शुरू कीजिए, कि गाड़ी चलाते वक्त क्या कायदे याद रखने होते हैं..."
मैंने कहा, "ठीक है, बेटे... गाड़ी में बैठने का सबसे पहला कायदा यह है कि आपको सीट बेल्ट बांधनी होती है, ताकि एक्सीडेंट हो भी जाए तो चोट कम से कम लगे, और खासतौर पर, सामने वाले कांच से टकराकर सिर न फट जाए..."
सार्थक एकदम हैरान हो गया, "यह बेल्ट चोट से बचने के लिए होती है...? मैं तो समझता था, यह गाड़ी चलाने वाले की यूनिफॉर्म होती है..."
मेरी हंसी छूट गई, और बोला, "हां बेटे, यह चोट से बचने के लिए ही होती है, लेकिन हर व्यक्ति इसे यूनिफॉर्म समझकर हमेशा पहनने लगे, तो कितना फायदा होगा..."
सार्थक ने फिर सवाल किया, "ओके, पापा... लेकिन चाचू के स्कूटर पर बेल्ट क्यों नहीं है...?"
मैं हैरान था कि इसे इतने सवाल कैसे सूझ जाते हैं, लेकिन खुश भी था, कि दिमाग से तेज़ है मेरा बेटा...
खैर, मैंने जवाब देते हुए कहा, "बेटे, स्कूटर या मोटरसाइकिल पर बेल्ट बांधने की जगह नहीं होती है, इसलिए उस पर बैठने से पहले हेल्मेट पहनना पड़ता है, ताकि गिर भी जाओ तो सिर बचा रहे..."
सार्थक तुरंत बोला, "अरे हां... याद आ गया, चाचू भी तो पहनते हैं, और एक बार शौक-शौक में मैंने भी पहना था... तो कार में सीट बेल्ट और स्कूटर पर हेल्मेट एक ही वजह से पहने जाते हैं...?"
मैं मुस्कुराया, "बिल्कुल ठीक समझे, बेटे... अब आगे सुनो... जैसे सड़क पार करने के लिए पैदल चलने वालों के लिए जगह तय होती है, उसी तरह गाड़ियों के लिए भी सड़क में लेन तय होती हैं..."
सार्थक फिर चकराया, "तय की गई लेन का क्या मतलब होता है, पापा...?"
मैंने बताया, "बेटे, सड़क पर सबसे दाईं ओर की लेन दूसरी गाड़ियों को ओवरटेक करने के लिए होती है... और दिल्ली में सबसे बाईं ओर की लेन डीटीसी की बसों के लिए होती है... इसके अलावा आपको अगर किसी चौराहे से मोड़ लेना है, तो कुछ दूर पहले ही मोड़ के मुताबिक दाईं या बाईं ओर की लेन में आ जाना चाहिए, लेकिन याद रहे, लेन बदलने या मोड़ लेने से पहले इंडिकेटर ज़रूर चलाएं, ताकि पीछे आ रही गाड़ियों को पता चल जाए, वरना एक्सीडेंट हो सकता है..."
सार्थक बहुत उत्सुकता से सुन रहा था, "ओके पापा, आगे बताइए..."
मैं फिर बोला, "गाड़ी चलाने के लिए गति, यानि स्पीड भी तय की गई है... आपको यह भी ध्यान रखना होगा, कि गाड़ी उससे तेज़ न चले..."
सार्थक ने चेहरे पर मुस्कान लाकर चहकते हुए फिर सवाल किया, "लेकिन स्पीड से क्या फर्क पड़ता है, पापा, क्योंकि तेज़ गाड़ी में तो ज़्यादा मज़ा आता है, जब हवा लगती है..."
मैंने कहा, "बेटे, मज़ा तो आता है, लेकिन अगर कभी अचानक कोई सामने आ जाए तो गाड़ी रोकना मुश्किल हो जाता है, और एक्सीडेंट हो सकता है... इसके अलावा हमेशा मोड़ तथा चौराहों पर अपनी गति विशेष रूप से नियंत्रित रखनी चाहिए... ऐसा करने से अचानक किसी के सामने आने पर रुकना आसान होता है... यह भी याद रखें कि यदि आपके पहुंचने से पहले चौराहे पर बत्ती पीली हो चुकी है, तो गाड़ी की स्पीड कम कर लें, और हमेशा जेब्रा क्रॉसिंग और स्टॉप लाइन से पहले रुकें, ताकि पैदल चलने वालों को रास्ता मिल सके..."
सार्थक के चेहरे से मुस्कान तुरंत पुंछ गई, और बोला, "ओह... हां, अगर टक्कर हो जाए, तो हम भगवान जी के पास भी पहुंच सकते हैं... ठीक है, स्पीड भी कम रखनी चाहिए, याद रखूंगा..."
मैंने आगे कहा, "स्पीड के अलावा याद रखने वाली बातों में यह भी शामिल है कि रात के वक्त आप ओवरटेक करने के लिए साइड मांगते वक्त ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न नहीं बजाएं, और हाईबीम का फ्लैश मारकर साइड मांगें, तो बेहतर रहता है... और किसी भी गाड़ी को हमेशा दाईं ओर से ही ओवरटेक करना चाहिए..."
सार्थक फिर बोला, "ठीक है, और बताइए..."
मैंने फिर बोलना शुरू किया, "रात के वक्त कभी भी हेडलाइट को हाईबीम पर न जलाकर डिपर ही जलाएं, ताकि सामने से आ रही गाड़ी के ड्राइवर की आंखें नहीं चौंधियाएं, जिससे दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी... यह भी याद रखें, कि जब तक ज़रूरी न हो, हॉर्न न बजाएं, क्योंकि उससे भी ध्वनि प्रदूषण फैलता है... इसके अलावा छोटी सड़क से मेन रोड या बड़ी सड़क पर आते समय सही और तय किए गए कट का ही प्रयोग करें, और ट्रैफिक के साथ-साथ ही चलें... यह भी याद रखना चाहिए कि जब आप कहीं बाहर जाकर अपनी गाड़ी पार्क करें, उसे बिल्कुल सीधा रखें, ताकि शेष गाड़ियों को आने-जाने में परेशानी न हो... पार्किंग करते वक्त यह भी चेक करना चाहिए कि गाड़ी अच्छी तरह लॉक कर दी है या नहीं..."
सार्थक ने सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं, और बोला, "ठीक है, पापा... मैं प्रॉमिस करता हूं, ये सभी बातें याद कर लूंगा, और जब मैं 18 साल का हो जाऊंगा, गाड़ी चलाना सीखकर, लाइसेंस बनवाकर आपको बिठाकर गाड़ी चलाकर दिखाऊंगा, ताकि आपको पता लग जाए, मैंने आपकी सारी बातें याद कर ली हैं..."
मैं उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराने के अलावा कुछ न कर सका, और सहलाते हुए बोला, "बस, एक-दो बातें और याद रखना, बेटे... मैं और आपकी मम्मी आपको और आपकी बहन निष्ठा को बहुत प्यार करते हैं... इसलिए हमेशा ध्यान रखना, पापा से इस बारे में कोई झूठा प्रॉमिस मत करना..."
सार्थक कसकर मुझसे लिपट गया, और बोला, "आई प्रॉमिस, पापा, कभी भी आपसे कोई झूठा प्रॉमिस नहीं करूंगा..."
...और उसके बाद कुछ ही मिनटों में वह मेरी बांहों में ही मुझसे लिपटे-लिपटे सो गया...
* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...
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इस आलेख की पहली दो कड़ियां भी पढ़ें...* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...
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