Thursday, September 8, 2011

क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...

छुट्टियों में बच्चे घर आए हुए थे, और मेरा इरादा उन्हें शनिवार-रविवार को कहीं घुमाने ले जाने का था...

पत्नी से बात की तो उन्होंने चिड़ियाघर ले चलने का सुझाव दिया, जो मुझे भी काफी पसंद आया...

सो, हमने शुक्रवार की रात को ही बच्चों को बता दिया, और उनका उत्साह देखते ही बनता था... शनिवार को दोनों बच्चे सचमुच सुबह-सुबह उठ गए, और हमें भी उठाकर जल्द से जल्द तैयार होने के लिए कहा...

बस, फिर क्या था, हम दोनों भी फटाफट तैयार हुए, और फिर हम बच्चों को नहीं, बच्चे हमें कार तक लेकर गए... मैंने कार का दरवाज़ा खोला, और हमेशा की तरह बच्चों से पीछे की सीट पर पहुंचने के लिए कहा...

सार्थक और निष्ठा तुरंत कार में सवार हो गए, हेमा मेरे साथ आगे की सीट पर बैठीं, और हम चल दिए...

रास्ते में फ्लाईओवर के ऊपर से दिखतीं दिल्ली कैन्टॉन्मेन्ट (दिल्ली छावनी) रेलवे स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियां, धौला कुआं पर खूबसूरत-से दिखने वाले सड़कों के लूप, फिर चाणक्य पुरी से होकर गुज़रते हुए तीन मूर्ति चौक पर लगी मूर्ति, साफ-सुथरी-लम्बी-चौड़ी अकबर रोड, और फिर इंडिया गेट देखकर बच्चों की खुशी का पारावार न था... इंडिया गेट के बारे में तो सार्थक को बताना भी नहीं पड़ा, और वह खुद ही बोला, "मेरी बुक में यह फोटो देखा है मैंने... यह इंडिया गेट है..."

खैर, इसी तरह बच्चों की खुशी से आनन्दित होते हम प्रगति मैदान से होते हुए पुराना किला पहुंचे, और फिर कुछ ही क्षण में चिड़ियाघर का प्रवेश द्वार दिख गया... कार को पार्किन्ग में ले जाकर खड़ा किया, और चारों मेन गेट की ओर चल दिए... बच्चे आगे-आगे भाग रहे थे, सो, हम दोनों ने एक-एक बच्चे का हाथ पकड़ लिया, और साथ चलाना शुरू कर दिया... अब हमारे सामने ही सड़क के पार चिड़ियाघर का प्रवेशद्वार था, सो, सार्थक अचानक हाथ छुड़ाकर भागा... मैं घबरा गया, तुरंत भागकर उसे पकड़ा, और डपटा, "तुम्हें कई बार समझाया है, इस तरह सड़क पार करने के लिए भागते नहीं हैं..."

सार्थक तुरंत बोला, "सॉरी पापा, लेकिन सामने ही तो है चिड़ियाघर..."

मैंने जवाब दिया, "हां बेटे, सामने ही है, लेकिन सड़क पार करने के बारे में मैंने जो समझाया था, वह हमेशा याद रखने वाली बात थी, और तुमने वादा भी किया था..."

सार्थक ने फिर कहा, "सॉरी पापा, मैं जोश-जोश में भूल गया था... लेकिन यहां तो कहीं भी रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग दिख ही नहीं रही है... अब क्या करेंगे हम...?"

मैंने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फिराया, और बोला, "मुझे खुशी है कि तुम्हें रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग के बारे में याद है... लेकिन जहां जेब्रा क्रॉसिंग नहीं होती, वहां सड़क पार करने के लिए हमें कुछ अलग नियमों का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि किसी गाड़ी से टक्कर न हो जाए..."

सार्थक के चेहरे पर एकदम उत्सुकता के भाव आए, और बोला, "कौन-से नियम, पापा...?"

मैंने कहा, "बेटे, सड़क पार करने से पहले किनारे पर खड़े होकर सबसे पहले हमें अपनी दाईं ओर देखना होता है, क्योंकि ट्रैफिक हमेशा वहीं से आता है... जब वह दिशा खाली हो, हमें बाईं ओर देखना होगा, और जब वह भी खाली मिले, फिर से दाईं तरफ देखो, और आराम से सड़क पार कर लो..."

सार्थक मुस्कुराया, "यह तो आसान है, पापा... पहले राइट हैन्ड की तरफ देखो, फिर लेफ्ट, और फिर राइट... ठीक है न...?"

मैंने उसकी पीठ थपथपाई, "हां बेटे, बिल्कुल ठीक है..."

इसके बाद हम चारों ने सड़क पार की, और प्रवेशद्वार तक पहुंच गए... प्रवेश टिकट के लिए लाइन में लगे, टिकट लिया, और कुछ ही पलों के बाद चिड़ियाघर के अंदर...

तरह-तरह के ढेरों देसी-विदेशी जानवर और पक्षी देखकर बच्चे पागल-से हुए जा रहे थे, और हम दोनों मियां-बीवी उन्हें खुश देखकर खुश हो रहे थे...

शेर, बाघ, चीता, तेंदुआ, हाथी, भालू, जिराफ, मोर, तोता, बंदर, बतख, हंस, बगुले जैसे पशु-पक्षी तो सार्थक अपनी किताबों में तस्वीरों में पहले भी देख चुका था, लेकिन सफेद बाघ (रॉयल बंगाल टाइगर), ईमू (शुतुरमुर्ग जैसा दिखने वाला पक्षी), दरियाई घोड़ा (हिप्पोपोटामस), और विशेषकर गैन्डा देखकर तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा... लगभग सभी जानवरों के बाड़ों के साथ खड़े होकर बच्चों ने तस्वीरें भी खिंचवाईं, और मस्ती करते रहे...


सबसे ज़्यादा दिलचस्प यह रहा कि अपनी मस्ती में दोनों बच्चों को थकान भी महसूस नहीं हुई, और तीन-चार घंटे कब बीत गए, हमें पता ही नहीं चला...

खैर, चिड़ियाघर की हमारी सैर खत्म हुई, और हम बाहर आकर पार्किन्ग में पहुंचे, और सार्थक की अगली फरमाइश थी, "पापा, प्लीज़ आज मम्मी से कहो कि वह पीछे बैठ जाएंगी, और मैं और निष्ठा आगे की सीट पर बैठेंगे, क्योंकि हमें रास्ते में आने वाली सारी चीज़ें करीब से देखनी हैं..."

मैंने फिर उसके सिर पर हाथ फिराया, और कहा, "बेटे, क्या आप चाहते हो कि हमारी कार किसी और कार से टकरा जाए...?"

सार्थक के चेहरे पर उलझन के भाव आए, और वह बोला, "मैं कुछ समझा नहीं, पापा... इसका क्या मतलब हुआ...?"

मैंने जवाब दिया, "बेटे, सुबह जब आप चिड़ियाघर आ रहे थे, कभी इस खिड़की पर, कभी उस खिड़की पर जा रहे थे न...?"

सार्थक ने तुरंत कहा, "हां पापा, वह तो हम इसलिए कर रहे थे, ताकि सभी चीज़ों को ठीक तरह से देख सकें... क्योंकि रेलगाड़ी बाईं खिड़की से ज़्यादा साफ दिखी थी, और वह तीन सिर वाली मूर्ति दाईं खिड़की से... फिर इंडिया गेट भी हमें दाईं खिड़की से ज़्यादा करीब दिख रहा था..."

मैं मुस्कुराया, और बोला, "बस बेटे, यही वजह होती है इस नियम की... बच्चों को कभी भी आगे की सीट पर चलाने वाले के साथ नहीं बैठना चाहिए, क्योंकि आप लोग बिल्कुल शांत होकर नहीं बैठ सकते... और इसके अलावा, भगवान न करे, अगर कभी टक्कर हो भी गई, तो आगे की सीट पर बैठे होने की वजह से बच्चों को बहुत ज़्यादा चोट लग सकती है..." 

सार्थक एकदम शांत हो गया, "हां, आप सही कह रहे हैं... अगर टक्कर हुई तो यहां मेरा सिर कांच से टकराएगा, और बहुत सारा लाल-लाल खून आ जाएगा... और अगर मैं पीछे की सीट पर बैठूंगा, तो मैं सिर्फ आगे की सीट से टकराऊंगा, और शायद खून नहीं आएगा..."

मैंने बहुत प्यार से अपने समझदार बेटे को बांहों में लिया, और उसका माथा चूमकर बोला, "शाबास बेटे, तुम सचमुच बहुत समझदार हो..."

लेकिन सार्थक अगर सवाल न करे, तो उसे सार्थक कौन कहे... फिर बोला, "लेकिन पापा, अगर टक्कर हो गई, तो आप और मम्मी को भी तो खून आ सकता है... है न...?"

इस बार सारे दिन में पहली बार जवाब हेमा ने दिया, "हां सार्थक, तुम सही कह रहे हो, बेटे... इसीलिए पापा से कहो, कार धीरे चलाया करें, ताकि किसी और कार से टक्कर न हो जाए..."

सार्थक तुरंत मेरी तरफ घूमा, और बोला, "प्रॉमिस कीजिए, पापा... आप कार को धीरे ही चलाओगे, और मैं भी प्रॉमिस करता हूं, आपसे कार को तेज़ चलाकर दूसरी कारों को रेस में हराने के लिए नहीं कहूंगा..."

मैं मुस्कुराया, और बोला, "शाबास बेटे, अगर आप ज़िद नहीं करोगे, तो मैं भी कार तेज़ नहीं चलाऊंगा..."

हेमा ने तुरंत मेरी बांह थामी, और निष्ठा को गोद में लिए-लिए सार्थक के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, "बढ़िया... फिर हमें कोई कभी नहीं हरा पाएगा... हम सबसे जीत जाएंगे... मौत से भी..."

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इस आलेख की पहली और तीसरी कड़ियां भी पढ़ें...


* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...
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