Thursday, December 8, 2011

10 बार 400 पार, चार बार हिन्दुस्तान...

एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास में बहुत-से रिकॉर्ड छिपे हैं, और रोज़ नए बनते भी हैं, लेकिन कुछ रिकॉर्ड ऐसे हैं, जो बार-बार होने के बावजूद बेहद रोमांचित कर देते हैं... गुरुवार (8 दिसंबर, 2011) को ऐसे ही एक रिकॉर्ड में बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया भारतीय सलामी बल्लेबाज़ और कप्तान वीरेन्द्र सहवाग ने, जब उन्होंने मेहमान वेस्ट इंडीज़ टीम के खिलाफ इंदौर के होल्कर स्टेडियम में कुल 149 गेंदों का सामना करके 25 चौकों और सात छक्कों की मदद से 219 रन बनाए, और इस आतिशबाज़ी जैसी पारी की बदौलत टीम इंडिया ने मेहमानों के खिलाफ निर्धारित 50 ओवर में 418 रन ठोक डाले...

भारत के 418 रनों में आधे से भी अधिक का योगदान देने वाले सहवाग ने इस पारी में न सिर्फ मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के एक पारी में सर्वाधिक नाबाद 200 रनों के रिकॉर्ड को तोड़ा, बल्कि किसी भी पारी में 25 चौकों के रिकॉर्ड की बराबरी भी की...

एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में यह कारनामा अब तक सिर्फ 10 बार हो पाया है, जब किसी टीम ने 400 या अधिक रन बनाए हों... उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि इन 10 पारियों में से चार बार यह कारनामा टीम इंडिया ने ही किया है... भारत की इन पारियों के अतिरिक्त दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका ने दो-दो बार तथा न्यूज़ीलैण्ड और ऑस्ट्रेलिया ने एक-एक बार यह कारनामा किया है...

(एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अब तक खेली गई 400 रनों अथवा उससे अधिक की पारियों की सूची सबसे नीचे देखें...)

कुल 10 अवसरों में से आठ बार 400 रनों का आंकड़ा मैच की पहली पारी में छुआ गया, जबकि लक्ष्य का पीछा करते हुए यह अनूठी उपलब्धि सिर्फ दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका ने हासिल की है, जिनमें से दक्षिण अफ्रीका ने तो मैच भी जीता... इसी रिकॉर्ड से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 400 रनों के इस विशाल अंबार तक पहुंचने के बाद भी श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया वे दुर्भाग्यशाली टीमें रही हैं, जो मैच हार गईं...

आइए, एक नज़र डालते हैं, गुरुवार, 8 दिसम्बर, 2011 की इस पारी सहित सभी 10 पारियों पर तारीखवार नज़र... 

पहली बार...
एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास में पहली बार 12 मार्च, 2006 को कंगारू (ऑस्ट्रेलिया) टीम ने इस जादुई आंकड़े को छुआ था...

भ्रमणकारी कंगारुओं ने जोहानिसबर्ग में कप्तान रिकी पोन्टिन्ग के मात्र 105 गेंदों में बनाए तेजतर्रार 164 रनों के अलावा एडम गिलक्रिस्ट, साइमन कैटिच तथा माइकल हसी के अर्द्धशतकों की मदद से चार विकेट के नुकसान पर 434 रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया, जिसके बाद मेज़बान दक्षिण अफ्रीका की हार निश्चित मान ली गई, लेकिन चमत्कार होना बाकी था... 

दूसरी बार...
रनों के इस तत्कालीन सबसे बड़े अंबार का पीछा करते हुए मेज़बान टीम को तीन रन के कुल स्कोर पर पहला झटका भी लगा, परंतु उसके बाद कप्तान ग्रीम स्मिथ (55 गेंद, 90 रन) का साथ देने क्रीज़ पर पहुंचे हर्शल गिब्स ने पासा पलट दिया, और 111 गेंदों का सामना कर 21 चौकों और सात गगनभेदी छक्कों की मदद से 175 रन ठोक डाले...

रही-सही कसर विकेटकीपर बल्लेबाज़ मार्क बाउचर ने अपने अर्द्धशतक से पूरी कर दी, और मेज़बान टीम ने एक गेंद शेष रहते ही नौ विकेट पर 438 बनाकर न सिर्फ यह मैच एक विकेट से जीता, बल्कि 2-2 से बराबर चल रही शृंखला भी अपने नाम कर ली... 

तीसरी बार...
एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास का सबसे बड़ा स्कोर श्रीलंका टीम के नाम दर्ज है, जिसे उन्होंने नीदरलैण्ड के खिलाफ वर्ष 2006 में ही 4 जुलाई को बनाया...

नीदरलैण्ड के एम्सटेलवीन में खेली गई इस पारी में विस्फोटक सनत जयसूर्या ने 104 गेंदों पर 157 तथा तिलकरत्ने दिलशान ने 78 गेंदों पर 117 रनों की नाबाद पारी खेली और 50 ओवर में नौ विकेट के नुकसान पर 443 रन ठोक डाले, जिसके जवाब में मेज़बान टीम 48.3 ओवर में 248 रनों पर ढेर हो गई... 

चौथी बार...
चौथी बार यह आंकड़ा फिर दक्षिण अफ्रीका ने पार किया, जब वे वर्ष 2006 में 20 सितम्बर को भ्रमणकारी जिम्बाब्वे की टीम के खिलाफ अपने ही घर में पोचेफ्स्ट्रूम के मैदान में खेल रहे थे, और मेज़बान टीम ने इस पारी में पांच विकेट के नुकसान पर 418 रन बनाए...

इस पारी में विकेटकीपर बल्लेबाज़ मार्क बाउचर ने तूफानी प्रदर्शन करते हुए 68 गेंदों की अपनी पारी में 10 छक्के और आठ चौके मारे, तथा कुल 147 रन बनाकर आखिर तक नाबाद रहे... बाउचर के अलावा पारी को 400 के पार ले जाने में लूट्स बोसमैन, अल्वीरो पीटरसन तथा तत्कालीन कप्तान जैक कैलिस के अर्द्धशतकों का भी योगदान रहा...

जवाब में जिम्बाब्वे की टीम निर्धारित 50 ओवरों में चार विकेट के नुकसान पर कुल 247 रन ही बना पाई, और अंततः 171 रन से मैच हार गई... 

पांचवीं बार...
क्रिकेट विश्वकप के दौरान सिर्फ एक ही बार 400 रनों का आंकड़ा किसी टीम ने छुआ है, और वह भारत है...

वर्ष 2007 के वेस्ट इंडीज़ में खेले गए विश्वकप में बांग्लादेश और श्रीलंका से मिली हार की बौखलाहट में टीम इंडिया ने 19 मार्च को पोर्ट ऑफ स्पेन के मैदान में अपने ग्रुप की सबसे कमजोर टीम बरमूडा के खिलाफ पांच विकेट के नुकसान पर 413 रन ठोके...

इस पारी में वीरेन्द्र सहवाग ने 87 गेंदों पर 114 रन बनाए, जबकि सौरव गांगुली ने 114 गेंदों में 89, युवराज सिंह ने मात्र 46 गेंदों का सामना कर 83 रन, तथा मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने 29 गेंदों में 57 रन ठोके...

जवाब में बरमूडा की टीम 43.1 ओवर में कुल 156 के योग पर ऑलआउट हो गई, और भारत ने यह मैच 257 रनों के विशाल अंतर से जीता... 

छठी बार...
वर्ष 2008 में 1 जुलाई को स्कॉटलैण्ड के एबरडीन मैदान में आयरलैण्ड की टीम के खिलाफ कीवी टीम (न्यूज़ीलैण्ड) ने सलामी बल्लेबाज़ों जेम्स मार्शल तथा ब्रैंडन मैककुलम के बेहतरीन शतकों की मदद से दो विकेट के नुकसान पर 402 रनों का स्कोर बनाया...

इसमें जेम्स मार्शल ने 141 गेंदों का सामना कर चार छक्कों और 11 चौकों की मदद से 161 रन बनाए, जबकि ब्रैंडन मैककुलम ने कुल 135 गेंदों में 10 छक्कों और 12 चौकों की मदद से 166 रन ठोके...

जवाब में आयरलैण्ड की कमज़ोर टीम 28.4 ओवर में कुल 112 रनों के योग पर ऑलआउट हो गई, और न्यूज़ीलैण्ड ने यह मैच 290 रनों के विशाल अंतर से जीता... 

सातवीं बार...
400 रनों की सबसे पहले और दूसरे नंबर पर खेली गई पारियों की तरह ही सातवीं और आठवीं पारियां भी एक ही मैच में खेली गईं, परंतु इस बार लक्ष्य का पीछा कर रही टीम जीत से वंचित रह गई...

वर्ष 2009 में भारतीय दौरे पर आई श्रीलंकाई टीम के खिलाफ राजकोट में 15 दिसम्बर को खेले गए शृंखला के पहले मैच में टीम इंडिया ने वीरेन्द्र सहवाग के 102 गेंदों में बनाए 146 रन, तथा सचिन तेंदुलकर व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के अर्द्धशतकों की मदद से निर्धारित 50 ओवर में सात विकेट के नुकसान पर 414 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया... 

आठवीं बार...
जवाब में उपुल तरंगा और तिलकरत्ने दिलशान ने मेहमान टीम को अकल्पनीय शुरुआत दी और पहले विकेट के लिए 188 रनों की शानदार साझेदारी कर ली...

दिलशान ने अपनी शानदार पारी में 124 गेंदों पर 160 रन ठोके, जबकि तरंगा और कप्तान कुमार संगकारा ने क्रमशः 67 और 90 रनों का योगदान दिया...

आखिरी गेंद तक बेहद रोमांचक बने रहे इस मैच में अंततः मेहमान टीम को कामयाबी हासिल नहीं हो पाई, और वे 50 ओवर में आठ विकेट पर 411 रन ही बना पाए... 

नवीं बार...
इससे पहले भी आखिरी बार 400 रनों को छूने का कारनामा टीम इंडिया ने ही किया था, जब वर्ष 2010 की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीकी टीम भारतीय दौरे पर आई थी...

ग्वालियर में 24 फरवरी को खेले गए शृंखला के इस दूसरे मैच में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने एक और चमत्कारिक उपलब्धि भी हासिल की थी, जब उन्होंने एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास में पहली बार दोहरा शतक ठोका था...

सचिन के नाबाद 200 रनों के अलावा दिनेश कार्तिक ने 79, और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कुल 35 गेंदों में 68 रनों का योगदान दिया, जिसकी मदद से भारत ने तीन विकेट के नुकसान पर 401 रन बनाने में कामयाबी हासिल की...

जवाब में मेहमान टीम एबी डिविलियर्स की 114 रनों की खूबसूरत पारी के बावजूद 42.5 ओवर में कुल 248 रन पर ऑलआउट हो गई, और टीम इंडिया ने यह मैच 153 रनों से जीता... 

दसवीं बार...
वर्ष 2011 के आखिरी महीने की 8 तारीख को इंदौर के होल्कर स्टेडियम में मेहमान वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ खेले गए पांच मैचों की शृंखला के चौथे मैच में भारतीय सलामी बल्लेबाज़, मैन ऑफ द मैच और कप्तान वीरेन्द्र सहवाग ने कुल 149 गेंदों का सामना करके 25 चौकों और सात छक्कों की मदद से विश्व रिकॉर्ड 219 रन बनाए, और इस आतिशबाज़ी जैसी पारी की बदौलत टीम इंडिया ने मेहमानों के खिलाफ निर्धारित 50 ओवर में 418 रन ठोक डाले... सहवाग के अलावा इस पारी में गौतम गंभीर ने 67 और सुरेश रैना ने भी 55 रनों का योगदान दिया...

जवाब में मेहमान टीम के विकेटकीपर दिनेश रामदीन की 96 रनों की जुझारू पारी के अलावा कोई खिलाड़ी संघर्ष भी नहीं कर पाया, और पूरी टीम 49.2 ओवर में 265 रन बनाकर ढेर हो गई, और मेज़बान टीम इंडिया ने मैच 153 रन से जीत लिया...

(यदि चित्र पढ़ने योग्य न लगे, तो बड़ा करने के लिए उस पर क्लिक करें...)

Tuesday, October 25, 2011

दीपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएं...

पटाखों के कानफोड़ धमाकों, फुलझड़ियों की सतरंगी झिलमिलाती छटाओं, और अंतरतम को मिठास से भर देने वाली मिठाइयों के बीच धन-धान्य के दीप, ज्ञान की मोमबत्तियां, सुख के उजाले और समृद्धि की किरणें इस दिवाली पर रोशन कर दें दुःखों की अमावस्या को, आपके जीवन में... 


 दीपावली के इस पावन पर्व पर निष्ठा, सार्थक, हेमा तथा विवेक की ओर से हार्दिक मंगलकामनाएं...

Monday, October 24, 2011

Rolls-Royce Apparition Concept...

Author: Brett Davis (on January 10, 2011 in CarAdvice.com.au)

There’s concepts, and then there’s concepts that turn into production cars...

This is just a concept though and will only ever remain as one...

It’s called the Rolls-Royce Apparition Concept and you are seeing correctly; the driver sits outside while passengers are enclosed in the back...

Please click on the picture to view it in its original size...

The creation was developed by Jeremy Westerlund while he was studying art, and his aim was to design something similar to how they did it in the old days; driver up front, exposed outside, while the passengers are cooped inside at the back – like a horse and carriage type arrangement...

In all fairness, it is quite interesting to behold...

Although there are a lot of boxy, straight-cut shapes going on throughout the entire length of the car, the overall platform is stirring...

It offers loads of ‘you can’t do that’, which is what concepts are meant to be all about...

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Much of the car is based on the Rolls-Royce Phantom, in terms of initial design, carrying over a similar front end...

From the windscreen things get a little different, as there is no windscreen...

The bonnet just extends all the way over to the bootlid in one seamless stretch...

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It also features mahogany-encrusted wheels, traditional Rolls-Royce front grille and a low and long presence which would measure over seven metres in length if developed...

Jeremy Westerlund recently summed up the concept, saying that it’s:

"An ultra luxurious chauffeur driven limousine evoking the glamor and sophistication of chauffeur driven cars in the past that has since been lost...

"This vehicle is about being seen, but at the same time being invisible or an "Apparition" in the sense that you’re safely tucked away in its palatial and private interior..." 

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The model seen here is just a 1:4 scale version, and as mentioned, it is unlikely it will ever be turned into anything that could be bought from your local Rolls-Royce dealer...

Please click on the picture to view it in its original size...

Nonetheless, it certainly captures the imagination...

Photos and story courtesy: CarAdvice.com.au

Link to the original Story, published on CarAdvice.com.au: http://www.caradvice.com.au/97434/rolls-royce-apparition-concept/

Wednesday, October 19, 2011

दीवाली का इतिहास / कथा दीपावली की / दीवाली के पांच दिन / दीवाली से जुड़े पर्व

हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक है - पांच-दिवसीय दीवाली अथवा दीपावली का पर्व, जिसका इतिहास दंतकथाओं से भरपूर है, तथा अधिकतर कथाएं हिन्दू पुराणों में मिल जाती हैं... लगभग प्रत्येक कथा का सार बुराई पर अच्छाई की जीत ही है, परन्तु कथाओं में अन्तर भी मिलते हैं... 

दीवाली पर्व का पहला दिन - धनतेरस

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी (13वीं तिथि) को दीवाली पर्व का पहला दिन मनाया जाता है, जिसे धनतेरस अथवा धन्वन्तरि त्रयोदशी कहा जाता है... दीपोत्सव इसी दिन से शुरू हो जाता है...

हमारे देश में इस दिन से जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार राजा हिमा का 16-वर्षीय पुत्र अपनी शादी की चौथी रात को ही सांप के काटने के कारण लगभग मृत्युशैया पर पहुंच गया, परन्तु उसकी नवविवाहिता पत्नी ने अपने सभी आभूषण तथा सोने के सिक्के निकाले, अपने पति के शरीर के इर्द-गिर्द फैलाए, ढेरों दिये जलाकर चारों ओर रख दिए, तथा गीत गाने लगी... जिस समय मृत्यु के देवता यमराज राजा हिमा के पुत्र के प्राण हरने पहुंचे, दियों की गहनों से आती चमकदार रोशनी से उनकी आंखें चुंधिया गईं, तथा उसके तुरन्त बाद उनके कानों में राजकुमार की पत्नी की कर्णप्रिय आवाज़ सुनाई दी, और वह मंत्रमुग्ध होकर सारी रात गीत सुनते रहे... सवेरा होते ही राजकुमार की मृत्यु का समय टल गया, और यमराज को खाली हाथ मृत्युलोक लौटना पड़ा... इस तरह राजकुमारी अपने पति को मृत्यु के मुख से वापस लाने में सफल रही... उसी समय से धनतेरस का पर्व 'यमोदीपदान' के रूप में भी मनाया जाता है, और पूरी रात घर के बाहर दीप जलाकर रखते हैं, ताकि यमराज को घर में प्रवेश से रोका जा सके...

धनतेरस से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन देवताओं के वैद्य माने जाने वाले धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर सुरों-असुरों के समक्ष उपस्थित हुए थे...

धनतेरस का दिन धनागमन की दृष्टि से शुभ माना जाता है, तथा पुरानी मान्यताओं के अनुसार धनतेरस पर सोने-चांदी की खरीदारी लाभदायक होती है, और माना जाता है कि नया धन घर में धनागमन के प्रवेश का प्रतीक है... दो दिन बाद दीवाली की रात में लक्ष्मी पूजन के दौरान भी धनतेरस पर खरीदी गई वस्तुओं की पूजा की जाती है... धनतेरस के अवसर पर बर्तनों, वाहनों, तथा घरेलू सामान की भी खरीदारी की जाती है... रात के समय धन्वन्तरि भगवान की पूजा करते हैं, और दिया जलाकर घर के दरवाजे पर रखते हैं... उससे पूर्व संध्या के समय नदी, तालाब के किनारे, अथवा कुओं-बावड़ियों की जगत पर, तथा गोशालाओं-मंदिरों में भी दिये जलाए जाते हैं... 

दीवाली पर्व का दूसरा दिन - नर्क चतुर्दशी

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी (14वीं तिथि) को दीवाली पर्व का दूसरा दिन मनाया जाता है, जिसे नर्क चतुर्दशी अथवा नरक चौदस कहा जाता है... इस दिन को आम बोलचाल में छोटी दीवाली भी कहते हैं... इस दिन भी कुछ स्थानों पर पटाखे जलाए जाते हैं, तथा दीप प्रज्वलित किए जाते हैं... नरक चौदस पर सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश के बाद स्नान को महत्वपूर्ण माना जाता है... यह भी माना जाता है कि दीवाली के दौरान तीन दिन तक (धनतेरस, नर्क चतुर्दशी तथा दीपावली) दीपक जलाकर विधिपूर्वक पूजन करने से मृत्यु के बाद यम यातना नहीं भोगनी पड़ती, तथा पूजन करने वाला सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त होता है... इस त्योहार को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है, और इसी दिन रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था...

इस दिन से जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार प्रागज्योतिषपुर में नरकासुर नामक राजा हुआ करता था, जिसने युद्ध के दौरान देवराज इंद्र को परास्त करने के बाद देवमाता अदिति के कर्णफूल छीन लिए, तथा 16,100 देवपुत्रियों तथा मुनिपुत्रियों को रनिवास में कैद करके रख लिया... देवमाता अदिति देवलोक की शासक होने के साथ-साथ भगवान कृष्ण की पत्नी सत्यभामा की संबंधी थीं, जिन्हें इस घटना की सूचना मिलने पर बहुत क्रोध आया, तथा उन्होंने भगवान कृष्ण से नरकासुर को खत्म करने की अनुमति मांगी... प्रचलित कथा के अनुसार नरकासुर की मृत्यु एक श्राप के कारण किसी स्त्री के हाथों ही हो सकती थी, सो, कृष्ण ने सारथि का स्थान ग्रहण कर सत्यभामा को नरकासुर से युद्ध का अवसर प्रदान किया, और अंततः सत्यभामा ने नरकासुर को पराजित कर मार डाला... जिन देवपुत्रियों तथा मुनिपुत्रियों को नरकासुर की कैद से मुक्ति दिलाई गई, भगवान कृष्ण ने उन सभी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर उनका खोया सम्मान उन्हें लौटाया, तथा देवमाता अदिति के कर्णफूल भी उन्हें पुनः अर्पित कर दिए गए... विजय के प्रतीक चिह्न के रूप में भगवान कृष्ण ने नरकासुर के रक्त से अपने मस्तक पर तिलक किया, तथा नर्क चतुर्दशी की सुबह वह घर लौट आए, जहां उनकी पत्नियों ने उन्हें सुगंधित जल से स्नान करवाया तथा इत्र का छिड़काव किया, ताकि नरकासुर के शरीर की दुर्गन्ध भगवान के शरीर से चली जाए... ऐसी मान्यता है कि इसी कारण नर्क चतुर्दशी के दिन सायंकाल में स्नान की परम्परा आरम्भ हुई...

नर्क चतुर्दशी पर संध्या के समय स्नान कर कुलदेवता तथा पुरखों की पूजा की जाती है, तथा उन्हें नैवेद्य चढ़ाकर दीप प्रज्वलित किए जाते हैं... माना जाता है कि नर्क चतुर्दशी की पूजा से घर-परिवार से नर्क अर्थात् दु:ख-विपदाओं को बाहर निकाल दिया जाता है... इस दिन घर के आंगन, बरामदे और द्वार को रंगोली से सजाया जाता है... 

दीवाली पर्व का तीसरा दिन - दीवाली

इस पर्व का मुख्य दिन है तीसरा दिन, जिसे रोशनी के पर्व दीवाली अथवा दीपावली के रूप में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है... दीपावली दो शब्दों 'दीप' तथा 'अवलि' की सन्धि करने से बना है, जिसमें 'दीप' का अर्थ 'दिया' तथा 'अवलि' का अर्थ 'पंक्ति' है, अर्थात दीपावली का अर्थ है - दीपों की पंक्ति...

हमारे देश में हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्व दीपावली को लेकर अनेक पौराणिक कथाएं कही जाती हैं... सर्वाधिक प्रचलित कथा के अनुसार देश के उत्तरी भागों में दीवाली का पर्व भगवान श्री रामचंद्र द्वारा राक्षसराज रावण के वध के उपरान्त अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है... महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित धर्मग्रंथ रामायण में उल्लिखित कथा के अनुसार अयोध्या के राजकुमार राम अपनी विमाता कैकेयी की इच्छा तथा पिता दशरथ की आज्ञानुसार 14 वर्ष का वनवास काटकर तथा लंकानरेश रावण का वध कर इसी दिन पत्नी सीता, अनुज लक्ष्मण तथा भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे, तथा उनके स्वागत में पूरी नगरी को दीपों से सजाया गया था... उसी समय से दीवाली पर दिये जलाकर, पटाखे चलाकर, तथा मिठाइयां बांटकर इस शुभ दिन को मनाने की परम्परा शुरू हुई...

एक अन्य मान्यता के अनुसार दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर, जिसे 'केसरसागर' अथवा 'क्षीरसागर' भी कहा जाता है, से उत्पन्न हुई थीं... उत्पत्ति के उपरान्त मां लक्ष्मी ने सम्पूर्ण जगत के प्राणियों को सुख-समृद्धि का वरदान दिया, इसीलिए दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, तथा मान्यता है कि सम्पूर्ण श्रद्धा से पूजा करने से लक्ष्मी जी भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें धन-सम्पदा तथा वैभव से परिपूर्ण करती हैं, तथा मनवांछित फल प्रदान करती हैं...

इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली को फसलों की कटाई के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है... आमतौर पर इस समय तक अनाज और अन्य फसलों की कटाई का काम पूरा होने के बाद किसानों के हाथ में धन भी आ चुका होता है, इसलिए उस धन को लक्ष्मी माता के चरणों में अर्पित कर त्योहार की खुशियां मनाई जाती हैं...

दीपावली पर पूजन के लिए आवास में किसी भी प्रमुख स्थान पर (घर का मध्य नहीं होना चाहिए) किसी भी धुले हुए स्वच्छ स्थान पर उत्तर की ओर मुख करके अपने आराध्य की मूर्ति स्थापित करें... घर में ही हाथ से बने भोजन का भोग आराध्य को अवश्य लगाना चाहिए... घर के दक्षिण में दीप प्रज्वलन भी आवश्यक है... दीप प्रज्वलन के समय गन्ने, खील-खिलौने आदि का भोग भी लगाएं... दक्षिण में दीप प्रज्वलन पांचों दिन करना चाहिए... दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजन अवश्य किया जाता है... कहा जाता है कि अमावस्या की रात में देवी लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर निकलती हैं, तथा रोशनी से सराबोर भरों में प्रवेश करती हैं... 

दीवाली पर्व का चौथा दिन - गोवर्द्धन पूजा

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, अर्थात कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि, अर्थात दीवाली से अगले दिन गोवर्द्धन पूजा या अन्नकूट पूजा मनाया जाता है... श्रद्धालु इस दिन गाय के गोबर से गोवर्द्धन पर्वत के सम्मुख भगवान श्रीकृष्ण, गायों व बालगोपालों की आकृतियां बनाकर उनकी पूजा करते हैं... प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार गोकुलवासी वर्षा के देवता कहे जाने वाले इंद्र को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक वर्ष उनकी पूजा करते थे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ऐसा करने से रोककर गोवर्द्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा... इस पर इंद्र ने क्रोधवश गोकुल पर भारी मूसलाधार बारिश करवा दी, जिससे ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथ की कनिष्ठा (सबसे छोटी अंगुली) पर सात दिन तक गोवर्द्धन पर्वत को उठाए रखा, तथा सभी ग्रामीणों, गोपी-गोपिकाओं, ग्वाल-बालों व पशु-पक्षियों की रक्षा की... सातवें दिन भगवान ने पर्वत को नीचे रखा और सभी गोकुलवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्द्धन पूजा कर अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी... इसके बाद से ही श्रीकृष्ण भगवान गोवर्द्धनधारी के नाम से भी प्रसिद्ध हुए और इंद्र ने भी कृष्ण के ईश्वरत्व को स्वीकार कर लिया...

इस दिन भगवान की पूजा के उपरान्त विविध खाद्य सामग्रियों से उन्हें भोग लगाया जाता है। मथुरा और नाथद्वारा के मंदिरों में भगवान का दूध आदि से अभिषेक कर नाना प्रकार के आभूषणों से सजाया भी जाता है... पारम्परिक पूजा के उपरान्त गोवर्द्धन पर्वत के आकार में मिठाइयां बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है, और बाद में उन्हें ही प्रसाद रूप में बांटा भी जाता है... आमतौर पर घरों में ही गाय के पवित्र कहे जाने वाले गोबर से लीपकर ही गोवर्द्धन पर्वत समेत श्रीकृष्ण, गायों व अन्य आकृतियों को बनाकर उनकी पूजा की जाती है... 

दीवाली पर्व का पांचवां दिन - भैयादूज / चित्रगुप्त पूजा

दीपावली के पांच-दिवसीय महापर्व का अंतिम पड़ाव होता है - भैयादूज... यह भाई-बहन के अगाध प्रेम का प्रतीक है, तथा इस दिन बहनें अपने भाइयों को भोजन कराकर तिलक करती हैं तथा उनके कल्याण व दीर्घायु की कामना करती हैं, और भाई भी बहनों को आशीर्वाद देकर भेंट दिया करते हैं... यह भी कहा जाता है कि दीवाली का महापर्व भैयादूज के बिना सम्पूर्ण नहीं होता... हिन्दीभाषी उत्तर भारत में इस पर्व को भैयादूज अथवा भाईदूज के नाम से जाना जाता है, परन्तु महाराष्ट्र में इसे 'भाव-भीज', पश्चिम बंगाल में 'भाई-फोटा' और नेपाल में 'भाई-टीका' कहकर पुकारा जाता है...प्रचलित कथा के अनुसार यमराज इस दिन अपनी बहन यमुना के घर गए थे, जिसने यमराज की पूजा कर उनके मंगल, आनन्द तथा समृद्धि की कामना की, सो, तभी से सभी बहनें इसी दिन अपने भाइयों की रक्षा के लिए पूजा करती आई हैं... इस त्योहार को इसी कथा के कारण 'यमद्वितीया' के नाम से भी पुकारा जाता है...

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार नरकासुर को मारने के बाद भगवान कृष्ण इसी दिन अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे, जिसने कृष्ण का पारम्परिक स्वागत करते हुए उनकी पूजा की थी...

एक प्रचलित कथा यह भी है कि इसी दिन भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था, जिससे उनके भाई राजा नंदीवर्द्धन बहुत व्यथित हुए... तब उनकी बहन सुदर्शना ने उन्हें काफी दिलासा दी, तथा उनकी सुख-शांति तथा रक्षा के लिए पूजा-अर्चना की... तभी से सभी महिलाएं भैयादूज मनाकर अपने भाइयों की रक्षा की प्रार्थना करती आई हैं... विधि के अनुसार बहनें इस दिन अपने भाई की दीर्घायु की कामना करते हुए उपवास रखती हैं, तथा सुबह स्नान के उपरान्त पूजा की थाली सजाकर भाई का तिलक करती हैं तथा बुरी नज़र से बचाने के लिए उनकी आरती उतारती हैं... इसके एवज में भाई भी बहनों को उपहार दिया करते हैं...

भैयादूज के दिन ही जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना भी की जाती है, जिसे 'दवात पूजा' के नाम से भी जाना जाता है, और कलम-दवात की पूजा की जाती है... हिन्दू मान्यता के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने अपने शरीर के विभिन्न अंगों से 17 पुत्रों की रचना की तथी, जिनमें चित्रगुप्त अंतिम थे... चित्रगुप्त की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के पेट से हुई मानी जाती है, सो, यही कारण है कि ब्रह्मा के अन्य पुत्रों से इतर चित्रगुप्त का जन्म पुरुष काया के साथ हुआ, और इसी कायाधारी होने के कारण ही इन्हें कायस्थ नाम से भी जाना जाता है...

हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि जीवन सतत गतिशील चक्र है, जो जन्म-दर-जन्म चलता रहता है, जब तक प्राणी मोक्ष को प्राप्त नहीं हो जाता... धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त जीवों के धर्म-अधर्म और अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं, तथा उन्हीं के अनुसार प्राणी को फल भोगना पड़ता है... भगवान चित्रगुप्त ही किसी भी प्राणी के कर्मों तथा पाप-पुण्य का ब्योरा भगवान को देते हैं और फिर उसी के आधार पर जीव के अगले जन्म, दशा और योनि का निर्धारण किया जाता है, अथवा मोक्ष की प्राप्ति होती है... 

दीवाली पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा...

दीपावली के पर्व से ही एक कथा महाप्रतापी राजा बलि की भी जुड़ी हुई है, जो बेहद महत्वाकांक्षी भी थे, जिसके कारण कुछ देवताओं ने डरकर भगवान विष्णु को राजा बलि की शक्तियां सीमित करने तथा उनकी गर्व चूर करने का आग्रह किया... तब भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण का अवतार ग्रहण किया, जिसे वामनावतार कहा जाता है, और बलि के पास पहुंचकर उनसे तीन पग भूमि दान करने के लिए कहा... बलि ने हंसकर हां कहा, तो विष्णु अपने वास्तविक स्वरूप में आए, और पहले पग में धरती, और दूसरे पग में आकाश को माप लिया... तब बलि का गर्व चूर हुआ, तथा तीसरे पग को उसने अपने सिर पर धरवाया, और उसके बाद स्वयं पाताल जाकर बस गया...

Monday, October 10, 2011

नहीं रहे ग़ज़लों के बादशाह जगजीत...


तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाज़े गए सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह का सोमवार, अक्टूबर 10, 2011 को प्रातः आठ बजकर 10 मिनट पर मुंबई के लीलावती अस्पताल में देहावसान हो गया... उन्हें कुछ ही दिन पहले ब्रेन हैमरेज के बाद यहां भर्ती कराया गया था और उनका ऑपरेशन भी किया गया, परन्तु उनकी हालत लगातार गंभीर बनी रही और अंततः मौत ने एक शीरीं आवाज़ को हमेशा के लिए खामोश कर दिया...

जगजीत को अनियंत्रित हाई ब्लड प्रेशर के कारण ब्रेन हैमरेज हुआ था... इससे पहले जनवरी, 1998 में उन्हें हार्ट अटैक भी हुआ था, जिसकी वजह से उन्होंने सिगरेट पीना छोड़ दिया था... अक्टूबर, 2007 में भी धमनियों में आई समस्या की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था... जगजीत का जन्म 8 फरवरी, 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था...

Tuesday, September 27, 2011

परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...

अपने बेटे सार्थक और उसकी हरकतों को देख-देखकर मैं हमेशा बेहद खुशी महसूस करता हूं, क्योंकि मेरे माता-पिता के मुताबिक वह बिल्कुल मेरे जैसा है, और उसके शौक भी मुझसे मिलते-जुलते हैं...

मेरी तरह उसे भी कम्प्यूटर पर वीडियो गेम खेलने, गाने सुनने और फिल्में देखने का शौक है... मेरी ही तरह उसे कलाबाजियां खाने, जिमनास्टिक्स, और मार्शल आर्ट्स में काफी रुचि है... वह मेरी ही तरह ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर चढ़ता रहता है... मेरी तरह सार्थक भी चित्रकारी करना और रंगों से खेलना पसंद करता है... मेरी तरह उसे भी कार में घूमने का शौक है...

मैं लगभग सभी पिताओं की तरह अपने बेटे की हर फरमाइश को पूरा करने की इच्छा भी रखता हूं, सो, उसके सभी शौक मेरे जरिये पूरे हो जाते हैं, और इसीलिए वह हमेशा मेरे साथ बेहद खुश रहता है...

वैसे मुझे इन सबके अलावा पढ़ने-लिखने और कार चलाने का भी काफी शौक है, लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें थीं... छोटी उम्र की वजह से सार्थक अभी अच्छी तरह पढ़ना-लिखना नहीं जानता, और अभी गाड़ी चलाने की भी उम्र नहीं हुई उसकी...

बहरहाल, एक शाम हम दोनों बाज़ार गए थे, और वापसी में साहबज़ादे ने फरमाइश की, "पापा, मुझे भी कार चलाना सिखाइए न...?"

मैंने घूमकर उसकी ओर देखा, और मुस्कुराकर कहा, "अभी तुम बहुत छोटे हो, सार्थक... अभी कई साल लगेंगे तुम्हें गाड़ी चलाना सीखने के लायक बनने में..."

सार्थक के चेहरे पर उलझन के भाव आए, और वह बोला, "सीखने लायक बनने का क्या मतलब होता है, पापा...?"

मैंने एक किनारे गाड़ी को रोका, और उसके सिर पर हाथ फिराकर प्यार से बोला, "बेटे, गाड़ी चलाना सीखने से पहले उनसे जुड़े कुछ कायदे याद करना ज़रूरी होता है... बिल्कुल वैसे ही, जैसे हिन्दी या अंग्रेज़ी की कहानी-कविताएं पढ़ाने से पहले आपके स्कूल में आपको क-ख-ग और ए-बी-सी सिखाई गई थी..."

सार्थक को कुछ-कुछ समझ आया, और उसका अगला सवाल था, "ओह, तो क्या गाड़ी चलाने के लिए भी कोई क-ख-ग होती है क्या...?"

मैंने ज़ोर से हंसा, और बोला, "हां बेटे, होती है... और उसे सीखने में ज़्यादा समय भी नहीं लगता..."
सार्थक तपाक से बोला, "तो फिर आप सिखाइए मुझे..."

मैंने कहा, "पहले घर चलते हैं, वरना मम्मी को चिंता हो जाएगी... और मैं वादा करता हूं, घर चलकर आपको नई क-ख-ग सिखा दूंगा..."

बच्चों से कभी झूठे वादे नहीं करने का फायदा यह होता है कि वे हमेशा हमारी बात मान लेते हैं, सो, वही हुआ... सार्थक तुरंत बोला, "ठीक है, पापा... घर चलकर ही सही..."

हम घर पहुंचे, और सार्थक तुरंत कपड़े बदलकर मेरे साथ आकर लेट गया, और बोला, "अब शुरू करें, पापा...?"

उसका उत्साह मुझे हमेशा पसंद आता है, इसलिए दिन-भर की थकान के बावजूद मैंने हामी भर दी...

सार्थक चेहरे पर बेहद उत्सुक भाव लिए मेरे बोलने का इंतज़ार कर रहा था, जब मैंने कहा, "सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि गाड़ी चलाने के लिए पहला कायदा यह होता है कि चलाने वाले की उम्र कम से कम 18 साल की होनी चाहिए..."

सार्थक तुरंत मायूस स्वर में बोला, "इसका मतलब मुझे बहुत साल इंतज़ार करना होगा, क्योंकि मैं तो अभी सिर्फ छह साल का हूं...?"

मैंने हां में सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए कहा, "हां बेटे, कार चलाने के लिए तो इंतज़ार करना होगा, लेकिन उसके कायदे आप अभी से सीख सकते हो..."

सार्थक के चेहरे पर फिर मुस्कान आ गई, और बोला, "ठीक है फिर... सिखाइए मुझे..."

मैंने बोलना शुरू किया, और सार्थक बहुत ध्यान से सुन रहा था, "बेटे, सबसे पहला नियम तो आप अब जान ही गए हो, लेकिन 18 साल का होने के बाद भी जब आपके पास गाड़ी चलाने का लाइसेंस न हो, आपको गाड़ी नहीं चलानी चाहिए..."

सार्थक फिर उलझन में आ गया, "लेकिन पापा, अभी आपने कहा, गाड़ी चलाने के लिए उम्र 18 साल होनी चाहिए, फिर यह लाइसेंस क्या होता है...?"

मैंने बताया, "बेटा, आप जब 18 साल के हो जाते हैं, आप यातायात कार्यालय में जाकर गाड़ी चलाना सीखने के लिए एक अर्जी देते हैं, और वे आपको प्रशिक्षु लाइसेंस (लर्निन्ग लाइसेंस) जारी कर देते हैं... उसके कुछ समय के बाद आप गाड़ी चलाना सीखकर वापस उनके पास जाते हैं, ड्राइविंग का टेस्ट देते हैं, तब आपको सड़क पर गाड़ी चलाने का लाइसेंस मिलता है... सो, याद रखना, लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाने का मतलब है, आपको गाड़ी चलाना नहीं आता, और आप सभी के लिए खतरा बन सकते हैं... और हां, बिना लाइसेंस गाड़ी चलाना अपराध भी है..."

सार्थक घबराकर बोला, "इसका मतलब, पुलिस भी पकड़ सकती है... ओके, मैं याद रखूंगा कि गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस होना ज़रूरी है..."

मैं हंसकर बोला, "शाबास बेटे... अब आपको दूसरा नियम बताता हूं... जब आप गाड़ी चलाने निकलें, यह पक्का कर लें, कि गाड़ी सही हालत में है, इसलिए उसकी सर्विस, जांच और देखभाल नियमित रूप से करवाते रहें..."

सार्थक तपाक से बोला, "हां, सही कह रहे हैं आप... एक दिन सामने वाले अंकल भी कह रहे थे, उन्होंने अपनी कार में कोई ऑयल नहीं बदलवाया था, इसलिए रात को सुनसान सड़क पर जब गाड़ी खराब हो गई, वह बहुत डर गए थे... बड़ी मुश्किल से घर पहुंचे थे वह..."

मैंने कहा, "हां बेटे, बिल्कुल सही... इसीलिए गाड़ी को हमेशा बिल्कुल ठीक रखना चाहिए... वैसे इसके अलावा भी दो और बातें हैं, जिनका ध्यान आपको गाड़ी चलाने से पहले रखना होगा... एक, गाड़ी का बीमा हो, और वह नियमित रूप से नवीकृत (रिन्यू) करवाया गया हो..."

सार्थक कतई कुछ नहीं समझा, उलझन-भरे स्वर में बोला, "अब यह बीमा क्या होता है, पापा...?"

मैंने समझाया, "बेटे, अगर आपकी गाड़ी चोरी हो गई तो कितना नुकसान होगा..."

सार्थक उत्तेजित होकर बोला, "अरे, फिर हम नई गाड़ी कैसे लाएंगे, क्योंकि आपने कहा था, बहुत सारे रुपये की आती है गाड़ी..."

मैं मुस्कुराया, "इसीलिए बीमा ज़रूरी होता है, बेटे... अगर आपकी गाड़ी चोरी हो जाए, या उसके साथ कोई एक्सीडेंट हो जाए, जिसमें गाड़ी टूट-फूट जाए, तो जो भी नुकसान होता है, वह बीमा कंपनी देगी, और आपका नुकसान कम से कम होगा... यहां तक कि अगर बीमा ढंग से करवाया जाए तो एक्सीडेंट में आपको या किसी और को चोट लगने पर भी बीमा कंपनी इलाज का पैसा खर्च करेगी..."

सार्थक मुस्कुराया, "ठीक है, पापा... बीमा करवाना भी याद रखूंगा... अब आप दूसरी बात बताओ..."

मैं फिर बोला, "इसके अलावा गाड़ी जो धुआं छोड़ती है, उसकी अधिकतम मात्रा से जुड़ा भी एक नियम बनाया गया है, ताकि शहर में धुआं कम से कम हो, और लोग बीमार न पड़ें..."

सार्थक को फिर एक पुरानी बात याद आई, और बोला, "हां, आपने कहा था, आपकी नानी जी को किसी बीमारी की वजह से सांस लेने में परेशानी होती थी, और इसी वजह से वह भगवान जी के पास भी चली गई थीं..."

मैंने तुरंत कहा, "हां सार्थक, बिल्कुल सही... मेरी नानी जी को दमे की बीमारी थी, जो गाड़ियों के धुएं से भी फैलती है... इसीलिए गाड़ी से धुआं नियंत्रित मात्रा में ही निकलें, इसकी जांच भी करवाते रहनी चाहिए... सो, याद रखना, गाड़ी से जुड़े सभी प्रमाणपत्र पूरे होने चाहिए, और हमेशा उन्हें अपने साथ ही रखना चाहिए, वरना इसके लिए भी पुलिस पकड़ सकती है..."

सार्थक बेचारा पुलिस के नाम से घबराता है, बोला, "अरे बाप रे... क्या गाड़ी से जुड़े हर काम के लिए पुलिस पकड़ लेती है...?"

मैं ज़ोर से हंसा, "हां, पकड़ती तो है, लेकिन यह ज़रूरी भी है, बेटे..."

सार्थक मुस्कुराकर बोला, "ठीक है, पापा... अब आगे बताइए..."

मैंने फिर कहा, "अब नंबर आता है, गाड़ी में लगे शीशों का, जिन्हें आप छेड़ते रहते हो..."

सार्थक तपाक से बोला, "मैं तो नहीं छेड़ता, लेकिन मम्मी बिन्दी ठीक करने के लिए उस शीशे को हिलाती हैं... आपको तो पता ही है, क्योंकि आप उन्हें डांटते भी हो..."

मैंने उसके सिर पर चपत लगाई, और कहा, "मेरी कार के शीशे को मम्मी हिलाती हैं, लेकिन चाचू के स्कूटर के शीशे को तो आप ही हिलाते रहते हो न...?"

सार्थक ने सिर झुकाकर कहा, "हां, वह तो मैं करता हूं... सॉरी... अब नहीं छेड़ूंगा, लेकिन उनके बारे में आप क्या बता रहे थे...?"

मैंने कहा, "वे शीशे गाड़ी चलाते वक्त आपको अपने पीछे चल रहे वाहनों को देखने में मदद करते हैं, ताकि एक्सीडेंट से बचा जा सके... क्योंकि अगर आप पीछे से आती गाड़ी को नहीं देख पाए, और अचानक मुड़ गए, तो टक्कर हो सकती है..."

सार्थक ने तुरंत कहा, "हां, बिल्कुल सही... जैसे आज ही मैं बिना देखे भागकर स्कूल के दरवाज़े से बाहर आ रहा था, और मुझे दिखा ही नहीं कि दूसरी तरफ से एक लड़की आ रही थी... हम दोनों बहुत ज़ोर से टकराए, और गिर गए..."

मैंने उसके सिर पर हाथ फिराया, और कहा, "आप मेरे होशियार बेटे हो, हर बात बहुत जल्दी समझ जाते हो... इसीलिए कार या स्कूटर या मोटरसाइकिल चलाते वक्त शीशे को ऐसी स्थिति में रखना चाहिए, ताकि पीछे से आती गाड़ियों को बिना गर्दन घुमाए हमेशा देखा जा सके..."

सार्थक बोला, "ठीक है, पापा... यह भी याद रखूंगा... अब प्लीज़ यह बताना शुरू कीजिए, कि गाड़ी चलाते वक्त क्या कायदे याद रखने होते हैं..."

मैंने कहा, "ठीक है, बेटे... गाड़ी में बैठने का सबसे पहला कायदा यह है कि आपको सीट बेल्ट बांधनी होती है, ताकि एक्सीडेंट हो भी जाए तो चोट कम से कम लगे, और खासतौर पर, सामने वाले कांच से टकराकर सिर न फट जाए..."

सार्थक एकदम हैरान हो गया, "यह बेल्ट चोट से बचने के लिए होती है...? मैं तो समझता था, यह गाड़ी चलाने वाले की यूनिफॉर्म होती है..."

मेरी हंसी छूट गई, और बोला, "हां बेटे, यह चोट से बचने के लिए ही होती है, लेकिन हर व्यक्ति इसे यूनिफॉर्म समझकर हमेशा पहनने लगे, तो कितना फायदा होगा..."

सार्थक ने फिर सवाल किया, "ओके, पापा... लेकिन चाचू के स्कूटर पर बेल्ट क्यों नहीं है...?"

मैं हैरान था कि इसे इतने सवाल कैसे सूझ जाते हैं, लेकिन खुश भी था, कि दिमाग से तेज़ है मेरा बेटा...

खैर, मैंने जवाब देते हुए कहा, "बेटे, स्कूटर या मोटरसाइकिल पर बेल्ट बांधने की जगह नहीं होती है, इसलिए उस पर बैठने से पहले हेल्मेट पहनना पड़ता है, ताकि गिर भी जाओ तो सिर बचा रहे..."

सार्थक तुरंत बोला, "अरे हां... याद आ गया, चाचू भी तो पहनते हैं, और एक बार शौक-शौक में मैंने भी पहना था... तो कार में सीट बेल्ट और स्कूटर पर हेल्मेट एक ही वजह से पहने जाते हैं...?"


मैं मुस्कुराया, "बिल्कुल ठीक समझे, बेटे... अब आगे सुनो... जैसे सड़क पार करने के लिए पैदल चलने वालों के लिए जगह तय होती है, उसी तरह गाड़ियों के लिए भी सड़क में लेन तय होती हैं..."

सार्थक फिर चकराया, "तय की गई लेन का क्या मतलब होता है, पापा...?"

मैंने बताया, "बेटे, सड़क पर सबसे दाईं ओर की लेन दूसरी गाड़ियों को ओवरटेक करने के लिए होती है... और दिल्ली में सबसे बाईं ओर की लेन डीटीसी की बसों के लिए होती है... इसके अलावा आपको अगर किसी चौराहे से मोड़ लेना है, तो कुछ दूर पहले ही मोड़ के मुताबिक दाईं या बाईं ओर की लेन में आ जाना चाहिए, लेकिन याद रहे, लेन बदलने या मोड़ लेने से पहले इंडिकेटर ज़रूर चलाएं, ताकि पीछे आ रही गाड़ियों को पता चल जाए, वरना एक्सीडेंट हो सकता है..."

सार्थक बहुत उत्सुकता से सुन रहा था, "ओके पापा, आगे बताइए..."

मैं फिर बोला, "गाड़ी चलाने के लिए गति, यानि स्पीड भी तय की गई है... आपको यह भी ध्यान रखना होगा, कि गाड़ी उससे तेज़ न चले..."

सार्थक ने चेहरे पर मुस्कान लाकर चहकते हुए फिर सवाल किया, "लेकिन स्पीड से क्या फर्क पड़ता है, पापा, क्योंकि तेज़ गाड़ी में तो ज़्यादा मज़ा आता है, जब हवा लगती है..."

मैंने कहा, "बेटे, मज़ा तो आता है, लेकिन अगर कभी अचानक कोई सामने आ जाए तो गाड़ी रोकना मुश्किल हो जाता है, और एक्सीडेंट हो सकता है... इसके अलावा हमेशा मोड़ तथा चौराहों पर अपनी गति विशेष रूप से नियंत्रित रखनी चाहिए... ऐसा करने से अचानक किसी के सामने आने पर रुकना आसान होता है... यह भी याद रखें कि यदि आपके पहुंचने से पहले चौराहे पर बत्ती पीली हो चुकी है, तो गाड़ी की स्पीड कम कर लें, और हमेशा जेब्रा क्रॉसिंग और स्टॉप लाइन से पहले रुकें, ताकि पैदल चलने वालों को रास्ता मिल सके..."

सार्थक के चेहरे से मुस्कान तुरंत पुंछ गई, और बोला, "ओह... हां, अगर टक्कर हो जाए, तो हम भगवान जी के पास भी पहुंच सकते हैं... ठीक है, स्पीड भी कम रखनी चाहिए, याद रखूंगा..."

मैंने आगे कहा, "स्पीड के अलावा याद रखने वाली बातों में यह भी शामिल है कि रात के वक्त आप ओवरटेक करने के लिए साइड मांगते वक्त ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न नहीं बजाएं, और हाईबीम का फ्लैश मारकर साइड मांगें, तो बेहतर रहता है... और किसी भी गाड़ी को हमेशा दाईं ओर से ही ओवरटेक करना चाहिए..."

सार्थक फिर बोला, "ठीक है, और बताइए..."

मैंने फिर बोलना शुरू किया, "रात के वक्त कभी भी हेडलाइट को हाईबीम पर न जलाकर डिपर ही जलाएं, ताकि सामने से आ रही गाड़ी के ड्राइवर की आंखें नहीं चौंधियाएं, जिससे दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी... यह भी याद रखें, कि जब तक ज़रूरी न हो, हॉर्न न बजाएं, क्योंकि उससे भी ध्वनि प्रदूषण फैलता है... इसके अलावा छोटी सड़क से मेन रोड या बड़ी सड़क पर आते समय सही और तय किए गए कट का ही प्रयोग करें, और ट्रैफिक के साथ-साथ ही चलें... यह भी याद रखना चाहिए कि जब आप कहीं बाहर जाकर अपनी गाड़ी पार्क करें, उसे बिल्कुल सीधा रखें, ताकि शेष गाड़ियों को आने-जाने में परेशानी न हो... पार्किंग करते वक्त यह भी चेक करना चाहिए कि गाड़ी अच्छी तरह लॉक कर दी है या नहीं..."

सार्थक ने सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं, और बोला, "ठीक है, पापा... मैं प्रॉमिस करता हूं, ये सभी बातें याद कर लूंगा, और जब मैं 18 साल का हो जाऊंगा, गाड़ी चलाना सीखकर, लाइसेंस बनवाकर आपको बिठाकर गाड़ी चलाकर दिखाऊंगा, ताकि आपको पता लग जाए, मैंने आपकी सारी बातें याद कर ली हैं..."

मैं उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराने के अलावा कुछ न कर सका, और सहलाते हुए बोला, "बस, एक-दो बातें और याद रखना, बेटे... मैं और आपकी मम्मी आपको और आपकी बहन निष्ठा को बहुत प्यार करते हैं... इसलिए हमेशा ध्यान रखना, पापा से इस बारे में कोई झूठा प्रॉमिस मत करना..."

सार्थक कसकर मुझसे लिपट गया, और बोला, "आई प्रॉमिस, पापा, कभी भी आपसे कोई झूठा प्रॉमिस नहीं करूंगा..."

...और उसके बाद कुछ ही मिनटों में वह मेरी बांहों में ही मुझसे लिपटे-लिपटे सो गया...

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इस आलेख की पहली दो कड़ियां भी पढ़ें...

* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...
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Friday, September 23, 2011

The picture of the decade: The unborn thanks the surgeon...

If you find the picture unclear, click on it to enlarge...


(Courtesy: Internet)

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The picture is that of a 21-week-old unborn baby named Samuel Alexander Armas, who is being operated on by surgeon named Joseph Bruner...

The baby was diagnosed with spina bifida and would not survive if removed from his mother's womb...

Little Samuel's mother, Julie Armas, is an obstetrics nurse in Atlanta...

She knew of Dr. Bruner's remarkable surgical procedure...

Practicing at Vanderbilt University Medical Center in Nashville, he performs these special operations while the baby is still in the womb...

During the procedure, the doctor removes the uterus via C-section and makes a small incision to operate on the baby...

As Dr. Bruner completed the surgery on Samuel, the little guy reached his tiny, but fully developed hand through the incision and firmly grasped the surgeon's finger...

Dr. Bruner was reported as saying that when his finger was grasped, it was the most emotional moment of his life, and that for an instant during the procedure he was just frozen, totally immobile...

The photograph captures this amazing event with perfect clarity...

The editors titled the picture, 'Hand of Hope'...

The text explaining the picture begins, "The tiny hand of 21-week-old fetus Samuel Alexander Armas emerges from the mother's uterus to grasp the finger of Dr. Joseph Bruner as if thanking the doctor for the gift of life..."

Little Samuel's mother said they 'wept for days' when they saw the picture...

She said, "The photo reminds us pregnancy isn't about disability or an illness, it's about a little person..."

Samuel was born in perfect health, the operation 100 percent successful...

Thursday, September 8, 2011

क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...

छुट्टियों में बच्चे घर आए हुए थे, और मेरा इरादा उन्हें शनिवार-रविवार को कहीं घुमाने ले जाने का था...

पत्नी से बात की तो उन्होंने चिड़ियाघर ले चलने का सुझाव दिया, जो मुझे भी काफी पसंद आया...

सो, हमने शुक्रवार की रात को ही बच्चों को बता दिया, और उनका उत्साह देखते ही बनता था... शनिवार को दोनों बच्चे सचमुच सुबह-सुबह उठ गए, और हमें भी उठाकर जल्द से जल्द तैयार होने के लिए कहा...

बस, फिर क्या था, हम दोनों भी फटाफट तैयार हुए, और फिर हम बच्चों को नहीं, बच्चे हमें कार तक लेकर गए... मैंने कार का दरवाज़ा खोला, और हमेशा की तरह बच्चों से पीछे की सीट पर पहुंचने के लिए कहा...

सार्थक और निष्ठा तुरंत कार में सवार हो गए, हेमा मेरे साथ आगे की सीट पर बैठीं, और हम चल दिए...

रास्ते में फ्लाईओवर के ऊपर से दिखतीं दिल्ली कैन्टॉन्मेन्ट (दिल्ली छावनी) रेलवे स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियां, धौला कुआं पर खूबसूरत-से दिखने वाले सड़कों के लूप, फिर चाणक्य पुरी से होकर गुज़रते हुए तीन मूर्ति चौक पर लगी मूर्ति, साफ-सुथरी-लम्बी-चौड़ी अकबर रोड, और फिर इंडिया गेट देखकर बच्चों की खुशी का पारावार न था... इंडिया गेट के बारे में तो सार्थक को बताना भी नहीं पड़ा, और वह खुद ही बोला, "मेरी बुक में यह फोटो देखा है मैंने... यह इंडिया गेट है..."

खैर, इसी तरह बच्चों की खुशी से आनन्दित होते हम प्रगति मैदान से होते हुए पुराना किला पहुंचे, और फिर कुछ ही क्षण में चिड़ियाघर का प्रवेश द्वार दिख गया... कार को पार्किन्ग में ले जाकर खड़ा किया, और चारों मेन गेट की ओर चल दिए... बच्चे आगे-आगे भाग रहे थे, सो, हम दोनों ने एक-एक बच्चे का हाथ पकड़ लिया, और साथ चलाना शुरू कर दिया... अब हमारे सामने ही सड़क के पार चिड़ियाघर का प्रवेशद्वार था, सो, सार्थक अचानक हाथ छुड़ाकर भागा... मैं घबरा गया, तुरंत भागकर उसे पकड़ा, और डपटा, "तुम्हें कई बार समझाया है, इस तरह सड़क पार करने के लिए भागते नहीं हैं..."

सार्थक तुरंत बोला, "सॉरी पापा, लेकिन सामने ही तो है चिड़ियाघर..."

मैंने जवाब दिया, "हां बेटे, सामने ही है, लेकिन सड़क पार करने के बारे में मैंने जो समझाया था, वह हमेशा याद रखने वाली बात थी, और तुमने वादा भी किया था..."

सार्थक ने फिर कहा, "सॉरी पापा, मैं जोश-जोश में भूल गया था... लेकिन यहां तो कहीं भी रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग दिख ही नहीं रही है... अब क्या करेंगे हम...?"

मैंने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फिराया, और बोला, "मुझे खुशी है कि तुम्हें रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग के बारे में याद है... लेकिन जहां जेब्रा क्रॉसिंग नहीं होती, वहां सड़क पार करने के लिए हमें कुछ अलग नियमों का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि किसी गाड़ी से टक्कर न हो जाए..."

सार्थक के चेहरे पर एकदम उत्सुकता के भाव आए, और बोला, "कौन-से नियम, पापा...?"

मैंने कहा, "बेटे, सड़क पार करने से पहले किनारे पर खड़े होकर सबसे पहले हमें अपनी दाईं ओर देखना होता है, क्योंकि ट्रैफिक हमेशा वहीं से आता है... जब वह दिशा खाली हो, हमें बाईं ओर देखना होगा, और जब वह भी खाली मिले, फिर से दाईं तरफ देखो, और आराम से सड़क पार कर लो..."

सार्थक मुस्कुराया, "यह तो आसान है, पापा... पहले राइट हैन्ड की तरफ देखो, फिर लेफ्ट, और फिर राइट... ठीक है न...?"

मैंने उसकी पीठ थपथपाई, "हां बेटे, बिल्कुल ठीक है..."

इसके बाद हम चारों ने सड़क पार की, और प्रवेशद्वार तक पहुंच गए... प्रवेश टिकट के लिए लाइन में लगे, टिकट लिया, और कुछ ही पलों के बाद चिड़ियाघर के अंदर...

तरह-तरह के ढेरों देसी-विदेशी जानवर और पक्षी देखकर बच्चे पागल-से हुए जा रहे थे, और हम दोनों मियां-बीवी उन्हें खुश देखकर खुश हो रहे थे...

शेर, बाघ, चीता, तेंदुआ, हाथी, भालू, जिराफ, मोर, तोता, बंदर, बतख, हंस, बगुले जैसे पशु-पक्षी तो सार्थक अपनी किताबों में तस्वीरों में पहले भी देख चुका था, लेकिन सफेद बाघ (रॉयल बंगाल टाइगर), ईमू (शुतुरमुर्ग जैसा दिखने वाला पक्षी), दरियाई घोड़ा (हिप्पोपोटामस), और विशेषकर गैन्डा देखकर तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा... लगभग सभी जानवरों के बाड़ों के साथ खड़े होकर बच्चों ने तस्वीरें भी खिंचवाईं, और मस्ती करते रहे...


सबसे ज़्यादा दिलचस्प यह रहा कि अपनी मस्ती में दोनों बच्चों को थकान भी महसूस नहीं हुई, और तीन-चार घंटे कब बीत गए, हमें पता ही नहीं चला...

खैर, चिड़ियाघर की हमारी सैर खत्म हुई, और हम बाहर आकर पार्किन्ग में पहुंचे, और सार्थक की अगली फरमाइश थी, "पापा, प्लीज़ आज मम्मी से कहो कि वह पीछे बैठ जाएंगी, और मैं और निष्ठा आगे की सीट पर बैठेंगे, क्योंकि हमें रास्ते में आने वाली सारी चीज़ें करीब से देखनी हैं..."

मैंने फिर उसके सिर पर हाथ फिराया, और कहा, "बेटे, क्या आप चाहते हो कि हमारी कार किसी और कार से टकरा जाए...?"

सार्थक के चेहरे पर उलझन के भाव आए, और वह बोला, "मैं कुछ समझा नहीं, पापा... इसका क्या मतलब हुआ...?"

मैंने जवाब दिया, "बेटे, सुबह जब आप चिड़ियाघर आ रहे थे, कभी इस खिड़की पर, कभी उस खिड़की पर जा रहे थे न...?"

सार्थक ने तुरंत कहा, "हां पापा, वह तो हम इसलिए कर रहे थे, ताकि सभी चीज़ों को ठीक तरह से देख सकें... क्योंकि रेलगाड़ी बाईं खिड़की से ज़्यादा साफ दिखी थी, और वह तीन सिर वाली मूर्ति दाईं खिड़की से... फिर इंडिया गेट भी हमें दाईं खिड़की से ज़्यादा करीब दिख रहा था..."

मैं मुस्कुराया, और बोला, "बस बेटे, यही वजह होती है इस नियम की... बच्चों को कभी भी आगे की सीट पर चलाने वाले के साथ नहीं बैठना चाहिए, क्योंकि आप लोग बिल्कुल शांत होकर नहीं बैठ सकते... और इसके अलावा, भगवान न करे, अगर कभी टक्कर हो भी गई, तो आगे की सीट पर बैठे होने की वजह से बच्चों को बहुत ज़्यादा चोट लग सकती है..." 

सार्थक एकदम शांत हो गया, "हां, आप सही कह रहे हैं... अगर टक्कर हुई तो यहां मेरा सिर कांच से टकराएगा, और बहुत सारा लाल-लाल खून आ जाएगा... और अगर मैं पीछे की सीट पर बैठूंगा, तो मैं सिर्फ आगे की सीट से टकराऊंगा, और शायद खून नहीं आएगा..."

मैंने बहुत प्यार से अपने समझदार बेटे को बांहों में लिया, और उसका माथा चूमकर बोला, "शाबास बेटे, तुम सचमुच बहुत समझदार हो..."

लेकिन सार्थक अगर सवाल न करे, तो उसे सार्थक कौन कहे... फिर बोला, "लेकिन पापा, अगर टक्कर हो गई, तो आप और मम्मी को भी तो खून आ सकता है... है न...?"

इस बार सारे दिन में पहली बार जवाब हेमा ने दिया, "हां सार्थक, तुम सही कह रहे हो, बेटे... इसीलिए पापा से कहो, कार धीरे चलाया करें, ताकि किसी और कार से टक्कर न हो जाए..."

सार्थक तुरंत मेरी तरफ घूमा, और बोला, "प्रॉमिस कीजिए, पापा... आप कार को धीरे ही चलाओगे, और मैं भी प्रॉमिस करता हूं, आपसे कार को तेज़ चलाकर दूसरी कारों को रेस में हराने के लिए नहीं कहूंगा..."

मैं मुस्कुराया, और बोला, "शाबास बेटे, अगर आप ज़िद नहीं करोगे, तो मैं भी कार तेज़ नहीं चलाऊंगा..."

हेमा ने तुरंत मेरी बांह थामी, और निष्ठा को गोद में लिए-लिए सार्थक के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, "बढ़िया... फिर हमें कोई कभी नहीं हरा पाएगा... हम सबसे जीत जाएंगे... मौत से भी..."

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इस आलेख की पहली और तीसरी कड़ियां भी पढ़ें...


* कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...
* परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...
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Monday, September 5, 2011

कहां से, कैसे पार करनी चाहिए सड़क...

सार्थक स्कूल से लौटा तो बेहद घबराया हुआ था... इत्तफाक से मैं घर पर था, सो, मुझे देखते ही मुझसे कसकर लिपट गया, और बोला, "पापा, पापा... वहां एक आदमी के सिर से बहुत सारा लाल-लाल खून निकल रहा है..."

मैं भागा-भागा बाहर तक गया तो देखा, मेरे घर से कुछ ही दूरी पर सड़क के बीचोंबीच एक आदमी पड़ा है, जिसके सिर से बुरी तरह खून बह रहा है, सारी सड़क सुर्ख हो चुकी थी... भागकर मैंने अपनी कार उठाई, और कुछ तमाशबीनों की मदद से उस व्यक्ति को सीधा अस्पताल ले गया, जहां डॉक्टरों ने बिना समय गंवाए उसका इलाज शुरू कर दिया...

उसकी किस्मत अच्छी थी, वक्त पर ऑपरेशन हो जाने की वजह से उसकी जान बच गई, लेकिन क्या पता, कितने मासूम सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं...

मैं रात को घर वापस पहुंचा, तो सार्थक ने पूछा, "उन अंकल को क्या हुआ था, पापा...?"

मैंने बिल्कुल शांत स्वर में उसे बताया, "बेटे, उन अंकल को एक कार वाले ने टक्कर मार दी थी, इसलिए उनके सिर पर काफी चोट लग गई थी... अब डॉक्टरों ने उनके सिर पर पट्टी बांध दी है, इसलिए वह ठीक हो जाएंगे, लेकिन अभी कई दिन लगेंगे..."

सार्थक ने तुरंत प्रतिक्रिया दी, "लेकिन कार वाले अंकल को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्या...?"

मैं तब तक सड़क पर मौजूद तमाशबीनों में से अस्पताल पहुंचे कुछ लोगों से पूरी बात जान चुका था, सो, बोला, "बेटे, सारी गलती कार वाले अंकल की भी नहीं है... जिन अंकल को चोट लगी थी, वह गलत जगह से सड़क पार कर रहे थे... इसलिए उनकी टक्कर हुई..."

सार्थक के चेहरे पर हैरानी के भाव आए, और मुझसे बोला, "गलत जगह का मतलब...?"

मैं मुस्कुराया, और बेटे को बताया, "बेटे, सड़क पार करने के लिए हर चौराहे पर जेब्रा क्रॉसिंग बनी होती है, और पैदल लोगों को वहीं से सड़क पार करनी चाहिए..."

अब सार्थक के चेहरे पर उत्सुकता के भाव थे, बोला, "जेब्रा क्रॉसिंग क्या होती है, पापा...?"

मैंने फिर बताया, "बेटे, चौराहों के पास सड़कों पर जो काली-सफेद पट्टी रंग से बनी होती है, उसी को जेब्रा क्रॉसिंग कहते हैं... और सड़क पार करने के लिए वही सही जगह होती है... इसके अलावा रेड लाइट के बारे में तुम जानते ही हो... जब बत्ती लाल हो तो रुक जाना चाहिए..."

मेरी बात को बीच में ही काटकर उत्साहित स्वर में सार्थक बोला, "हां, पापा... हमारी मैडम ने भी सिखाया था... लाल बत्ती पर रुकना चाहिए, पीली बत्ती पर ध्यान ने देखना चाहिए, और हरी बत्ती हो जाने पर ही चलना चाहिए... और मैडम ने कहा था, जैसे गाड़ियों के लिए लालबत्ती होती है, वैसे ही पैदल चलने वालों के लिए भी हर चौराहे पर बत्ती लगी होती है, जिसके हरे होने पर ही सड़क पार करनी चाहिए... अब मैं यह भी याद रखूंगा कि हरी बत्ती हो जाने पर भी सड़क जेब्रा क्रॉसिंग से ही पार करनी चाहिए..."

मैंने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फिराया, और उठकर जाने ही लगा था, लेकिन सार्थक के सवाल इतनी जल्दी कहां खत्म होने वाले थे, वह बोला, "पापा, पापा... अगर आपको मैं नहीं बताता, और आप उन अंकल को डॉक्टर अंकल के पास नहीं ले जाते, तो वह भगवान जी के पास चले जाते न...?"

मैं बेहद उद्वेलित हो उठा, और बोला, "हां बेटे... अगर तुम मुझे नहीं बताते तो ऐसा ही होता..."

सार्थक ने मेरी बात को ध्यान से सुना और उसका अगला सवाल था, "लेकिन फिर कोई और अंकल आपसे पहले उन अंकल को डॉक्टर के पास क्यों नहीं ले गया...?"

मैं क्या जवाब देता, फिर भी बोला, "बेटे, शायद सब अपने-अपने काम से जा रहे होंगे, इसलिए जल्दी में होंगे... लेकिन आपको कभी कोई ऐसा हादसा दिखाई दे, तो तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाना..."

सार्थक हंसकर बोला, "जी पापा, मैं जरूर अस्पताल ले जाऊंगा..."

बस, मैंने उसे सीने से लगाया, और खाना खाने चल दिए...

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इस आलेख की अगली दो कड़ियां भी पढ़ें...


* क्या करें, जहां जेब्रा क्रॉसिंग न हो...
* परियों की नहीं, ट्रैफिक की कहानी सुनी सार्थक ने...

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Wednesday, August 17, 2011

अन्ना हजारे, मेरे फेसबुक स्टेटस में...

17 अगस्त, 2011 को दोपहर 16:10 बजे...
देश-भर में अन्ना के समर्थन में सिर्फ भीड़ का हिस्सा बन जाने से ज़्यादा ज़रूरी है, भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने मन को प्रतिबद्ध करना... सो, प्रण लीजिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध, और वह होगा अन्ना का समर्थन करना...

17 अगस्त, 2011 को दोपहर 15:00 बजे...
सीखो राहुल, सीखो... गरीबों के घर पर जाकर तस्वीरें खिंचवाने से तुम उतनी भीड़ नहीं जुटा पाए, जबकि तुम 'राजपरिवार का सदस्य' भी हो, तथा 'फर्स्ट टु द थ्रोन' भी कहे जाते हो... सो, सीखो अन्ना हजारे से, भीड़ जुटाने से भीड़ नहीं जुटती... भीड़ में मौजूद आम इंसान और उसकी तकलीफों से जुड़ने पर भीड़ खुद-ब-खुद जुट जाती है...

16 अगस्त, 2011 को दोपहर 14:10 बजे...
आज़ादी की लड़ाई में गांधी ने बहुत कुछ किया, लेकिन सत्ता नेहरू (बाद में उनके परिवार) को मिली... अब अन्ना गांधीवादी तरीका अपना रहे हैं, एक सही काम के लिए...

16 अगस्त, 2011 को दोपहर 13:20 बजे...
कल प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर पर तिरंगा फहरा रहे थे, क्योंकि स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ थी; लेकिन आज सुबह-सुबह यकीन करना मुश्किल हो गया कि मेरा मुल्क सचमुच आज़ाद है...

Thursday, August 4, 2011

Legends remember Kishore on Twitter...

Dev Anand (@itsmedevanand) tweeted: 

Happy birthday, Kishore... You are immortal... He sang his first song for me in Ziddi, 'Marne ki duayen kyu maangu...' His style had Saigal touch... Early years of kishore's singing had a touch of legendary KL Saigal, and later he developed his own style and was great in all types of songs... His voice had great resonance, though not a trained singer, but used to come for recordings only after proper rehearsal, or he used to postpone... Though I like all his songs but 'Dukhi man mere...', Phoolon ke rang se...' are close to my heart, before recording he used to ask me if I want him to sing in any particular way to match my mannerisms, so I used to tell him to keep me in mind while singing and I used to perform on his style, great synchronization... I truly miss him...

Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) tweeted: 

Namaskar,aaj kishoreda ka janamdin hai,meri kishoreda ki mulaqat 1948 mein hui. Aur kishore da aur mera pehela duet ziddi film ke liye record hua. Ismein khemchand prakashji ka sangeet tha. Mere khayal se ye kishore da ki as a playback singer first film thi jismein unka jag mag jag mag karta nikla chand ye solo song tha jo us waqt bahot hit hua tha. Kishoreda ek bahot kamal ke singer to the hi par song writer.music director,film director,actor,producer,story writer ye sab guun bhi unme kamal ke the magar phir bhi wo bahot namra aur atyant aam insan ki tarha rehete the.Hum sab ko wo jab bhi recording mein aate the,bahot hasaate the,aaj unki bahot yaad aarahi hai.

किशोर कुमार के कुछ सदाबहार नगमे...

Thursday, May 12, 2011

अमर टेप कथा - भाग 23 - कुल 23 - Amar Tape Katha - Part 23 of 23

आइए सुनते हैं, समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह के साथ टेलीफोन पर हुई विभिन्न कॉरपोरेट हस्तियों, शीर्ष राजनीतिज्ञों और बॉलीवुड हस्तियों की बातचीत की रिकॉर्डिंग, जिसे सार्वजनिक करने पर लगी रोक बुधवार, 31 मई, 2011 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दी है... हमारे पास सभी 23 टेप हैं, जिन्हें आप यहां सुन सकते हैं...



न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली ने अमर सिंह की टेलीफोन पर हुई बातचीत की टैप की गई सामग्री प्रसारित अथवा प्रकाशित करने को लेकर मीडिया पर लगाई गई रोक को हटाते हुए सिंह की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करने के साथ ही गत 27 फरवरी को दिए गए अपने उस अंतरिम आदेश को भी वापस ले लिया, जिसमें उसने मीडिया को अमर सिंह की बातचीत से संबंधित टैप सामग्री को सार्वजनिक नहीं करने को कहा गया था... साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि हासांकि अमर सिंह ने इस मामले में अदालत से तथ्यों को छिपाया है, परंतु वह अपना फोन अवैध रूप से टैप करने के लिए रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ मामला दायर कर सकते हैं... पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार या उसके किसी विभाग के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, क्योंकि सिंह का टेलीफोन टैप करने में वे शामिल नहीं थे...

पीठ ने 29 मार्च, 2011 को अमर सिंह की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, क्योंकि वह उनका (सिंह) और गैर-सरकारी संगठन द सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) का पक्ष सुनना चाहती थी... सीपीआईएल ने सिंह की ओर से दाखिल याचिका का विरोध करते हुए उनकी सभी टैप बातचीतों को सार्वजनिक करने का आदेश देने की मांग की थी... उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी, 2006 को इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और प्रिंट मीडिया पर सिंह सहित सभी की बातचीत की टेपों की सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगा दी थी... जब सिंह की टेलीफोन बातचीतों को टैप किया गया था, उस समय वह समाजवादी पार्टी के महासचिव थे... उन्होंने इससे पहले कांग्रेस एवं निजी टेलीकॉम प्रदाता कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम पर टैपिंग में हाथ होने के आरोप लगाए थे, परंतु बाद में कांग्रेस के खिलाफ लगाए आरोपों को वापस ले लिया था...

अमर टेप कथा - भाग 22 - कुल 23 - Amar Tape Katha - Part 22 of 23

आइए सुनते हैं, समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह के साथ टेलीफोन पर हुई विभिन्न कॉरपोरेट हस्तियों, शीर्ष राजनीतिज्ञों और बॉलीवुड हस्तियों की बातचीत की रिकॉर्डिंग, जिसे सार्वजनिक करने पर लगी रोक बुधवार, 31 मई, 2011 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दी है... हमारे पास सभी 23 टेप हैं, जिन्हें आप यहां सुन सकते हैं...



न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली ने अमर सिंह की टेलीफोन पर हुई बातचीत की टैप की गई सामग्री प्रसारित अथवा प्रकाशित करने को लेकर मीडिया पर लगाई गई रोक को हटाते हुए सिंह की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करने के साथ ही गत 27 फरवरी को दिए गए अपने उस अंतरिम आदेश को भी वापस ले लिया, जिसमें उसने मीडिया को अमर सिंह की बातचीत से संबंधित टैप सामग्री को सार्वजनिक नहीं करने को कहा गया था... साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि हासांकि अमर सिंह ने इस मामले में अदालत से तथ्यों को छिपाया है, परंतु वह अपना फोन अवैध रूप से टैप करने के लिए रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ मामला दायर कर सकते हैं... पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार या उसके किसी विभाग के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, क्योंकि सिंह का टेलीफोन टैप करने में वे शामिल नहीं थे...

पीठ ने 29 मार्च, 2011 को अमर सिंह की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, क्योंकि वह उनका (सिंह) और गैर-सरकारी संगठन द सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) का पक्ष सुनना चाहती थी... सीपीआईएल ने सिंह की ओर से दाखिल याचिका का विरोध करते हुए उनकी सभी टैप बातचीतों को सार्वजनिक करने का आदेश देने की मांग की थी... उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी, 2006 को इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और प्रिंट मीडिया पर सिंह सहित सभी की बातचीत की टेपों की सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगा दी थी... जब सिंह की टेलीफोन बातचीतों को टैप किया गया था, उस समय वह समाजवादी पार्टी के महासचिव थे... उन्होंने इससे पहले कांग्रेस एवं निजी टेलीकॉम प्रदाता कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम पर टैपिंग में हाथ होने के आरोप लगाए थे, परंतु बाद में कांग्रेस के खिलाफ लगाए आरोपों को वापस ले लिया था...

अमर टेप कथा - भाग 21 - कुल 23 - Amar Tape Katha - Part 21 of 23

आइए सुनते हैं, समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह के साथ टेलीफोन पर हुई विभिन्न कॉरपोरेट हस्तियों, शीर्ष राजनीतिज्ञों और बॉलीवुड हस्तियों की बातचीत की रिकॉर्डिंग, जिसे सार्वजनिक करने पर लगी रोक बुधवार, 31 मई, 2011 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दी है... हमारे पास सभी 23 टेप हैं, जिन्हें आप यहां सुन सकते हैं...



न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली ने अमर सिंह की टेलीफोन पर हुई बातचीत की टैप की गई सामग्री प्रसारित अथवा प्रकाशित करने को लेकर मीडिया पर लगाई गई रोक को हटाते हुए सिंह की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करने के साथ ही गत 27 फरवरी को दिए गए अपने उस अंतरिम आदेश को भी वापस ले लिया, जिसमें उसने मीडिया को अमर सिंह की बातचीत से संबंधित टैप सामग्री को सार्वजनिक नहीं करने को कहा गया था... साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि हासांकि अमर सिंह ने इस मामले में अदालत से तथ्यों को छिपाया है, परंतु वह अपना फोन अवैध रूप से टैप करने के लिए रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ मामला दायर कर सकते हैं... पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार या उसके किसी विभाग के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, क्योंकि सिंह का टेलीफोन टैप करने में वे शामिल नहीं थे...

पीठ ने 29 मार्च, 2011 को अमर सिंह की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, क्योंकि वह उनका (सिंह) और गैर-सरकारी संगठन द सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) का पक्ष सुनना चाहती थी... सीपीआईएल ने सिंह की ओर से दाखिल याचिका का विरोध करते हुए उनकी सभी टैप बातचीतों को सार्वजनिक करने का आदेश देने की मांग की थी... उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी, 2006 को इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और प्रिंट मीडिया पर सिंह सहित सभी की बातचीत की टेपों की सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगा दी थी... जब सिंह की टेलीफोन बातचीतों को टैप किया गया था, उस समय वह समाजवादी पार्टी के महासचिव थे... उन्होंने इससे पहले कांग्रेस एवं निजी टेलीकॉम प्रदाता कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम पर टैपिंग में हाथ होने के आरोप लगाए थे, परंतु बाद में कांग्रेस के खिलाफ लगाए आरोपों को वापस ले लिया था...

अमर टेप कथा - भाग 20 - कुल 23 - Amar Tape Katha - Part 20 of 23

आइए सुनते हैं, समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह के साथ टेलीफोन पर हुई विभिन्न कॉरपोरेट हस्तियों, शीर्ष राजनीतिज्ञों और बॉलीवुड हस्तियों की बातचीत की रिकॉर्डिंग, जिसे सार्वजनिक करने पर लगी रोक बुधवार, 31 मई, 2011 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दी है... हमारे पास सभी 23 टेप हैं, जिन्हें आप यहां सुन सकते हैं...



न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली ने अमर सिंह की टेलीफोन पर हुई बातचीत की टैप की गई सामग्री प्रसारित अथवा प्रकाशित करने को लेकर मीडिया पर लगाई गई रोक को हटाते हुए सिंह की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करने के साथ ही गत 27 फरवरी को दिए गए अपने उस अंतरिम आदेश को भी वापस ले लिया, जिसमें उसने मीडिया को अमर सिंह की बातचीत से संबंधित टैप सामग्री को सार्वजनिक नहीं करने को कहा गया था... साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि हासांकि अमर सिंह ने इस मामले में अदालत से तथ्यों को छिपाया है, परंतु वह अपना फोन अवैध रूप से टैप करने के लिए रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ मामला दायर कर सकते हैं... पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार या उसके किसी विभाग के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, क्योंकि सिंह का टेलीफोन टैप करने में वे शामिल नहीं थे...

पीठ ने 29 मार्च, 2011 को अमर सिंह की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, क्योंकि वह उनका (सिंह) और गैर-सरकारी संगठन द सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) का पक्ष सुनना चाहती थी... सीपीआईएल ने सिंह की ओर से दाखिल याचिका का विरोध करते हुए उनकी सभी टैप बातचीतों को सार्वजनिक करने का आदेश देने की मांग की थी... उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी, 2006 को इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और प्रिंट मीडिया पर सिंह सहित सभी की बातचीत की टेपों की सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगा दी थी... जब सिंह की टेलीफोन बातचीतों को टैप किया गया था, उस समय वह समाजवादी पार्टी के महासचिव थे... उन्होंने इससे पहले कांग्रेस एवं निजी टेलीकॉम प्रदाता कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम पर टैपिंग में हाथ होने के आरोप लगाए थे, परंतु बाद में कांग्रेस के खिलाफ लगाए आरोपों को वापस ले लिया था...

अमर टेप कथा - भाग 19 - कुल 23 - Amar Tape Katha - Part 19 of 23

आइए सुनते हैं, समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह के साथ टेलीफोन पर हुई विभिन्न कॉरपोरेट हस्तियों, शीर्ष राजनीतिज्ञों और बॉलीवुड हस्तियों की बातचीत की रिकॉर्डिंग, जिसे सार्वजनिक करने पर लगी रोक बुधवार, 31 मई, 2011 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दी है... हमारे पास सभी 23 टेप हैं, जिन्हें आप यहां सुन सकते हैं...



न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली ने अमर सिंह की टेलीफोन पर हुई बातचीत की टैप की गई सामग्री प्रसारित अथवा प्रकाशित करने को लेकर मीडिया पर लगाई गई रोक को हटाते हुए सिंह की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करने के साथ ही गत 27 फरवरी को दिए गए अपने उस अंतरिम आदेश को भी वापस ले लिया, जिसमें उसने मीडिया को अमर सिंह की बातचीत से संबंधित टैप सामग्री को सार्वजनिक नहीं करने को कहा गया था... साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि हासांकि अमर सिंह ने इस मामले में अदालत से तथ्यों को छिपाया है, परंतु वह अपना फोन अवैध रूप से टैप करने के लिए रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ मामला दायर कर सकते हैं... पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार या उसके किसी विभाग के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, क्योंकि सिंह का टेलीफोन टैप करने में वे शामिल नहीं थे...

पीठ ने 29 मार्च, 2011 को अमर सिंह की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, क्योंकि वह उनका (सिंह) और गैर-सरकारी संगठन द सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) का पक्ष सुनना चाहती थी... सीपीआईएल ने सिंह की ओर से दाखिल याचिका का विरोध करते हुए उनकी सभी टैप बातचीतों को सार्वजनिक करने का आदेश देने की मांग की थी... उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी, 2006 को इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और प्रिंट मीडिया पर सिंह सहित सभी की बातचीत की टेपों की सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगा दी थी... जब सिंह की टेलीफोन बातचीतों को टैप किया गया था, उस समय वह समाजवादी पार्टी के महासचिव थे... उन्होंने इससे पहले कांग्रेस एवं निजी टेलीकॉम प्रदाता कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम पर टैपिंग में हाथ होने के आरोप लगाए थे, परंतु बाद में कांग्रेस के खिलाफ लगाए आरोपों को वापस ले लिया था...

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